वृंदावन। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उल्लास मनाते हैं, व्रत रखते हैं, और विविध धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस अवसर आइए आज जानते हैं वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज से जन्माष्टमी के अवसर पर व्रत और पूजा के नियमों के बारे में।
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत रखने वालों के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। ये नियम न केवल व्रत की शुद्धता बनाए रखते हैं, बल्कि साधक की भक्ति को भी पूर्णता प्रदान करते हैं। व्रत के दिन साधकों को चाहिए कि वे पूरे दिन भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करें, उनके नाम का जाप करें और उनकी लीलाओं का स्मरण करें।
महाराज जी बताते हैं कि व्रत के दौरान अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए और केवल फलाहार ही करना चाहिए। साधक इस दिन विशेष रूप से सात्विक आहार का सेवन करें और दिनभर जल का सेवन करते रहें। इसके अलावा, व्रत रखने वाले भक्तों को क्रोध, झूठ और अन्य असत्य आचरण से दूर रहना चाहिए, जिससे व्रत की पवित्रता बनी रहे।
लड्डू गोपाल की पूजा के बारे में बताते हुए महाराज जी ने कहा कि भक्तों को इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप, लड्डू गोपाल का विशेष रूप से श्रृंगार करना चाहिए। उन्हें फूलों, आभूषणों, और सुंदर वस्त्रों से सजाया जाना चाहिए। पूजा के दौरान भगवान को तुलसी के पत्तों के साथ मक्खन, मिष्ठान, और पंचामृत का भोग अर्पित करना चाहिए।
इसके साथ ही, प्रेमानंद जी महाराज ने इस बात पर भी जोर दिया कि भोग में मक्खन और मिश्री का उपयोग अवश्य किया जाए, क्योंकि ये भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। पूजा के उपरांत कीर्तन और भजन-गायन का आयोजन करना चाहिए, जिससे पूरे वातावरण में भक्तिमय ऊर्जा का संचार हो सके।
अंत में, महाराज जी ने यह भी कहा कि चाहे व्रत रखा हो या न रखा हो, हर व्यक्ति को इस पावन दिन पर सच्चे मन से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करनी चाहिए और उनके चरणों में अपनी श्रद्धा समर्पित करनी चाहिए।