लाल मंदिर में विराग श्रद्धांजलि सभा का ऐतिहासिक आयोजन |
दिल्ली | श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र लालमंदिर चाँदनी चौक दिल्ली में परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक, जीवन है पानी की बूँद महाकाव्य के मूल रचयिता, ‘विमर्श एम्बिसा’ के जनक भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज के विशाल चतुर्विध संघ का भव्य मंगल प्रवेश हुआ। प्रातः काल राजा बाजार से मंगल बिहार ककर आचार्य संघ सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ लाल मंदिर पहुँचा, जगह जगह गुरुभक्तों ने आचार्य श्री के चरण परवार, और दीप थालो से मंगल आरती की। लाल मंदिर के मुख्य द्वार पर श्री पुनीत जी श्रीमति कविता ज्ये के साथ मंदिर मैनेजमेंट कमेटी ने गुरु के चरण धुलाकर स्वागत किया 1 भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन कर भाचार्य संघ मंचासीन हुआ। उपरान्त परम पूज्य सुक्षी आचार्य श्री विमर्शसागर जी के मंगल सानिध्य में समाधिस्य आचार्य परमपूज्य सुरिशच्छाचार्य श्री 108 विरागसागर जी महामुनिराज दिव्यावदानों के प्रति श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। जिसमें सर्वप्रथम मंगलाचरण, चित्र अनावरण, दीप प्रज्ज्वलन, गुरु पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, गुरुपूजन की गई। पश्चात भारतवर्षीय तीर्थमत्र कमेटी के यशस्वी अध्यक्ष बाबू जम्बूप्रसाद जी गाजियानाद की अध्यक्षता में श्रद्धांजलि का शुभारंभ हुआ। जिसमें संयम जेन हेमचंद जके संजय जने, पुनीत जेने, प्रवीण जैन, शरद जेन, डो. कमलेश बसते, श्री जराप्रसाद जी आदि अनेक रक्ताओं ने गुरु चरणों में अपनी विनयांजलि प्रस्तुत की, इसी क्रम में संघस्य मुनिराजों ने भी भाव वंदना की, फिर परम पूज्य आचार्य श्री विमर्श सागर नी- महामुनिराज में अपने उद्बोधन में कहा कि इस पंचम काल में चलते फिरते तीर्थ हैं हमारे दिगम्बर जैन गुरु। जैन संत भी – मिलि साधना का एक अभिन्न अंग है. सल्लेखना पूर्वक समाधि । आचार्य श्री विरागसागर जी महामुनिराज से एक महान आचार्य थे । लगभग 550 शिष्यों के अधिनायक ओर 150 से अधिक समाधियों के निर्यायाचार्य पूज्य आचार्य भगवन ने इस पंचम काल में जो समाधि का अपूर्व उदाहरण प्रस्तुत किया है वो श्रमण जगत के लिये दुर्लभ है। 10 से 1 जुलाई तक आचार्य संध का प्रवास लाल मंदिर में रहेगी।