मुनि श्री पुण्य सागर जी को होंगा मंगल प्रवेश।दो साधुओं ने किए केशलोच।
बांसवाड़ा | पंचम पट्टाधीश वात्सल्य वारिधी आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज संघ सहित बांसवाड़ा की खांदू कॉलोनी में विराजित है। आज की धर्म सभा में देशना में बताया कि इस जिनालय में मूलनायक श्री श्रेयांश नाथ भगवान के साथ आदिनाथ भगवान से लेकर श्री महावीर स्वामी तक सभी तीर्थंकरों की भगवान की प्रतिमाएं है आदिनाथ भगवान से युग प्रारंभ हुआ है चाहे तीर्थंकर हो ,मुनिराज हो या श्रावक हो सभी समस्या से ग्रसित होते हैं सभी को समस्या से कभी निराश नहीं होना चाहिए। निराश होकर समर्पण नहीं करना चाहिए आचार्य श्री ने जिनवाणी के आधार पर अनेक धार्मिक स्तवन स्तोत्र के बारे में बताया कि भगवान पर पूर्ण विश्वास श्रद्धा से पूजन स्तवन भक्ति से समस्या पीड़ा दुःख दूर होते हैं। भगवान साधुओं पर भी उपसर्ग आते हैं जिन्हे वह समता भाव से प्रभु के भक्ति से दूर करते हैं ब्रह्मचारी गज्जू भैया एवम समाज सेठ अमृतलाल अनुसार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने बताया कि प्राचीन आचार्यों श्री पूज्यपाद,श्री समंतभद्र आचार्य ,श्री मानतुंग आचार्य ने भगवान का गुणानुवाद कर धार्मिक स्तोत्र की भक्ति से रचना कर समस्या रूपी उपसर्ग ,पीड़ा दूर की। आचार्य श्री ने बताया कि पूज्यपाद आचार्य हजारे वर्ष पूर्व आकाश गमनी विद्या से गमन कर रहे थे, सूर्य की प्रचंड रोशनी से उनकी नेत्र ज्योति चली जाती हैं तब भगवान की भक्ति स्तुति कर शांति भक्ति की रचना करते हैं रचना पूर्ण होने पर नेत्र ज्योति वापस आती है । आचार्य श्री ने बताया कि हमने भी शारीरिक पीड़ा , श्रवण बेलगोला की यात्रा का मनोरथ प्रभु की भक्ति से प्राप्त किया । राजेश पंचोलिया अनुसार आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की मुनि दीक्षा सन 1969 में होने के 3 माह में 19 वर्षीय युवा साधु की नेत्र ज्योति चली गई थी जो 3 घंटे लगातार भगवान समक्ष उनके चरणों में शांति भक्ति के स्तवन से वापस प्राप्त हो गई । इसलिए आत्म बाल,मनोबल संकल्प से उपसर्ग रोग पीड़ा दूर होकर मनोरथ पूर्ण होता हैं । आचार्य श्री ने बताया कि साधु भगवान की स्तुति पीछी पूर्वक करते हैं साधू भी आपस में पीछी लेकर वंदना , प्रतिनमोस्तु वंदना करते हैं। साधु जो भक्तों को आशीर्वाद देते हैं उसमे तपस्या बल की शक्ति होती हैं अक्षय डांगरा अनुसार संघ के मुनि श्री प्रबुद्ध सागर जी एवम आर्यिका श्री पूर्णिमा मति जी ने केशलोच किया।दिनांक 23 जून को पूज्य मुनि श्री पुण्य सागर जी 18 शिष्यो सहित 17 वर्षों के बाद आचार्य श्री वर्धमान सागर जी की चरण वंदना के लिए पधार रहे हैं।