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जो स्व व पर कल्याण के लिए दिया जाता है वह दान कहलाता है स्वस्तिभूषण माताजी

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केशवरायपाटन | परम पूजनीय भारत गौरव गणिनी आर्यिका 105 स्वस्तिभूषण माताजी ने अतिशय क्षेत्र पर अपने मंगल प्रवचन में दान का महत्व बताया

पूज्य माताजी ने विस्तार पूर्वक बताया कि हर धर्म में दान की परम्परा हैं और जैन धर्म में तो दान को अत्यधिक महत्त्व दिया गया है! ऐसा क्यों? एक नहीं चार प्रकार के दान बताये हैं!औषध दान ज्ञान दान अभय दान आहार दान! चारों में धन की आवश्यकता है। औषधि देना है तो धन की आवश्यकता है ज्ञान दान में शास्त्र देना है तो शास्त्र छपवाने के लिए धन होना जरूरी है! आहार दान देने के लिए भी धन की आवश्यकता है!

अभय दान जीवों की रक्षा करना हाँ ये दान बिना धन से कर सकते हैं! जीवों की रक्षा करना देख कर चलना किसी जीव को मारना नहीं सताना नहीं पीड़ा नहीं देना! ये जरूर आप बिना धन के कर सकते हो! पर दान क्यों बताया है? इंसान को सबसे ज्यादा प्रेम किससे होता है? चमड़ी चली जाये दमड़ी ना जाये! ये दमड़ी क्या है? धन है!
जो स्व और पर के कल्याण के लिए दिया जाये वह दान है! धन से हमें कितना मोह होता है और जब हम उस धन को मंदिर निमार्ण में लगाते हैं तो हमें मंदिर से भी मोह हो जाता है!क्योंकि मंदिर निर्माण में हमारा भी धन लगा है! धर्मात्मा की ऐसी प्रकृति होती है कि वह पहले मंदिर को सजाता है बाद में अपने आपको सजाता है!

माताजी ने वर्तमान परिपेक्ष पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज कल
के बच्चे 1 लाख रूपये महीना कमा रहे हैं लेकिन उनमे दान के भाव नहीं है! मॉल से 10 हजार की जींस ले आएंगे लेकिन मंदिर में दान नहीं करेंगे!

जैन धर्म दान की परम्परा से ही चलेगा! हम जितना अपनी संस्कृति को सुरक्षित रखेंगे जितने प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराते रहेंगे उतना ही आने वाले समय तक जैन धर्म जीवित रहेगा!

माताजी ने जैन धर्म की प्राचीनता को बताते हुए कहा कि जैन धर्म की
प्राचीनता का अनुमान आप इससे ही लगा सकते हैं कि आज भी केरल महाराष्ट्र उड़ीसा आदि राज्यों में आज भी खुदाई में जैन मूर्तियां ही निकलती हैं!

कल राग के त्याग की चर्चा चल रही थी दान का मतलब भी राग का त्याग करना ही है! अप्रत्याख्यान कषाय का उदय है तो दान करने की इच्छा नहीं होगी! जीवन में करोडों कमा लेना लेकिन पुण्य के बिना दान भी नहीं कर सकते! जीवन में जो मिला है वह उपयोग करने के लिए मिला है! अपने धन का कम से कम 6% तो दान करना ही चाहिए! पहले घर पर कोई आता था तो पेट भर कर खिलाते थे अब प्लेट भरकर खिलाते हैं! इसलिए जीवन में दान अवश्य करना चाहिए! 10 रूपये हैं तो 1 रुपया दान में अवश्य निकालें!