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मन को स्वस्थ रखने के लिए एक्सरसाइज भी जरूरी है,और सामायिक मन की एक्सरसाइज है-स्वस्तिभूषण माताजी

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रामगंजमंडी | आज शास्त्री परिषद के विद्वत सम्मेलन में विद्वानों का विषय रहा प्रमाण और प्रमाणाभास! प्रमाण का अर्थ “होने” से है ! प्रमाणाभास का अर्थ है “नहीं है लेकिन है”! जैसे दर्पण में हम देखते हैं तब दिखते हैं लेकिन हैं नहीं ये प्रमाणाभास है! किसी ने पूंछा आपका मकान कहां है आप ने बताया अमुक शहर में है! ये प्रमाणाभास है क्योंकि शरीर की अपेक्षा से वह घर आपका है लेकिन आत्मा की अपेक्षा से नहीं है!
जब तक मन बाह्य क्रियाओं जैसे पाप कषाय आदि से जुड़ता है तब तक बाह्य वृद्धि होती है! हम संसार में रहें और संसार हमारे अंदर भी ना रहे! हम क्या पढ़ते हैं भजन में “संसार में रहकर प्राणी संसार को तज सकता है” जब बाह्य से ममत्व छूट जाए अंतरंग से ममत्व जुड़ जाए!
विगत दिनों से श्रावक के बारह व्रतों के विषय चल रहा था! 4 शिक्षाव्रतों में एक होता है सामायिक शिक्षाव्रत! सामायिक का अर्थ होता है “समता”! आम लेने बाजार गए तो दुकान वाले ने तराजू में एक ओर बांट रखा एक ओर आम रखकर तौला तो दोनो पलड़े समान रखे! बस इसी समानता का अर्थ है “सामायिक”! सभी परिणामों में सम रहना ही श्रेष्ठ है! सुनने में राग द्वेष नहीं करना चाहिए! देखने में राग द्वेष नहीं करना चाहिए!

पूज्य गुरु मां स्वस्तिभूषण माताजी ने कहा कि आजकल इंसान शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हाथों की एक्सरसाइज पैरों की एक्सरसाइज गर्दन की एक्सरसाइज कमर की एक्सरसाइज आदि करता है! लेकिन कभी विचार किया है कि मन को स्वस्थ रखने के लिए भी एक्सरसाइज करना चाहिए! अगर शरीर की एक्सरसाइज करने के बाद भी हम दुखी हैं तो हमे मन की एक्सरसाइज की आवश्यकता है! और सामायिक मन की एक्सरसाइज है! जितनी देर सामायिक किया उतनी देर राग द्वेष का त्याग रहता है! हमने दिन भर क्या किया हमे क्या नहीं करना चाहिए था उसका चिंतन करना! फिर बारह भावनाओं का चिंतवन करना!
माताजी ने कहा कि हमारा मन बिखरा हुआ है उसको समेटना पड़ेगा! हमारा मन घर में बच्चो में पत्नी में दोस्तों आदि में लगा है! जब हम सामायिक करते हैं ध्यान करते हैं तो अपने को अपने में समेट लेते है बस इसी को सामायिक कहते है! उन्होंने कहा कि सभी को दिन में कम से कम एक घड़ी सामायिक या ध्यान अवश्य करना चाहिए!