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कठिन सर्जरी और 35 दिनों की चिकित्सकीय निगरानी के बाद इंजीनियिरंग छात्र डिस्चार्ज

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  • प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थान के छात्र को एम्स में आत्महत्या के प्रयास के बाद एडमिट किया गया
  • आंतों और धमनियों के फट जाने की वजह से सर्जरी हुई कठिन, अधिक रक्तस्नाव भी रहा चुनौती
  • ट्यूब के माध्यम से छात्र को राहत देने का प्रयास, दूसरे चरण में अब खाद्य सामग्री की ट्यूब हटेगी

रायपुरअखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में खुद निर्मित घातक हथियार से आत्महत्या के प्रयास के बाद एडमिट किए गए रायपुर के प्रमुख इंजीनियरिंग कालेज के 19 वर्षीय छात्र को उपचार के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया है। कठिन सर्जरी प्रक्रिया और 35 दिनों तक चिकित्सकीय निगरानी में रहने के बाद छात्र को खतरे से बाहर होने पर डिस्चार्ज किया गया। अभी छात्र को खाना वाह्य ट्यूब के माध्यम से दिया जा रहा है। दूसरे प्रयास में चिकित्सक इसे हटाकर मुख से खाना देने का प्रयास करेंगे।

19 वर्षीय इस छात्र को एम्स रायपुर में 30 जनवरी 2024 को खुद के निर्मित एक घातक हथियार से आत्महत्या के प्रयास के बाद उपचार के लिए एडमिट किया गया था। छात्र ने मोटारनुमा हथियार तैयार कर खुद के पेट में गोली की तरह के छर्रे मारने का प्रयास किया था। इमरजेंसी में भर्ती होने तक छात्र होश में था परंतु चिकित्सकों के नियमित प्रयासों के बाद भी ह्दय गति निरंतर बढ़ रही थी। इमरजेंसी के डॉ. शिवराज ने सर्जरी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. राधाकृष्ण रामचंदानी के साथ डॉ. कृष्णा जांगिड, डॉ. टोखो और डॉ. एशरिया को इमरजेंसी में बुलाकर तुरंत ऑपरेशन करने का अनुरोध किया।

सर्जरी टीम ने पाया कि छात्र द्वारा निर्मित हथियार की वजह से उसके पेट में दो गुणा दो सेमी और एक गुणा एक सेमी के दो छिद्र बन गए हैं। हथियार में प्रयुक्त धातु के छर्रे पेट के अंदर आंतों को भेदते हुए रीढ़ की हड्डी के पास जाकर फंस गए थे। रोगी की गंभीर स्थिति को देखते हुए सर्जरी की टीम ने तुरंत एक्सप्लोरेटरी लेप्रोटॉमी सर्जरी का निर्णय लिया।

डॉ. रामचंदानी के साथ डॉ. जीवन वर्मा, डॉ. विशाल मोहंती, डॉ. तेजा और नर्सिंग ऑफिसर्स अभी एवं मोती ने भी सहयोग दिया। ट्रामा एवं इमरजेंसी विभाग के एनेस्थिसिया विभाग की ओर से डॉ. चंदन डे के निर्देशन में डॉ. मुस्सविर और डॉ. प्रशांत टीम का हिस्सा थे। सर्जरी से पूर्व टीम का मानना था कि इस प्रकार की प्रक्रिया में काफी रक्तस्नाव हो सकता है।

सर्जरी के दौरान ऐसा ही हुआ। चोट के कारण छात्र का दो लीटर से अधिक रक्त निकल चुका था जो पेट में एकत्रित था। सर्जरी टीम ने सर्जरी के तुरंत बाद समय पर रक्तस्नाव करने वाली नस का उपचार प्रारंभ किया। छात्र का ब्लड प्रेशर निरंतर कम हो रहा था जो 40/18 तक पहुंच चुका था मगर सर्जन्स के प्रयास से इसे नियमित कर दिया गया।

दूसरे चरण में चिकित्सकों ने पेट के अंदर घायल अंगों को चिह्नित कर उनका उपचार किया। इस प्रकार के केस में मृत्युदर काफी अधिक होने और इंफेक्शन की काफी अधिक संभावना होने की वजह से चिकित्सकों की टीम सोच समझकर निर्णय ले रही थी। स्व निर्मित हथियार से आंतों और धमनियों के क्षतिग्रस्त होने की वजह से गैस्ट्रिक जूस, पित्त रस और एंजाइम सीधे पेट के अंदरूनी हिस्सों के संपर्क में आकर संक्रमण बढ़ा सकते थे। इसलिए अंदरूनी हिस्सों की चोट को देखते हुए नाक, मुख और पेट में कई ट्यूब के माध्यम से रोगी की स्थिति को स्थिर करने का प्रयास किया गया। ऑपरेशन के पांच दिन बाद तक रोगी को आईसीयू में डॉ. चिन्मय पंडा, डॉ. देवेंद्र, डॉ. बालजी, डॉ. स्नेहा, डॉ. ऋषिकेश, डॉ. अभिनव और डॉ. फैजल के निर्देशन में रखा गया।

डॉ. रामचंदानी ने बताया कि अब छात्र को विभिन्न खाद्य ट्यूब को हटाकर उसे मुख के माध्यम से नियमित खाना खाने के लिए उपचार प्रदान किया जाएगा। इस प्रकार के मामलों में मृत्युदर और इंफेक्शन काफी अधिक होने की संभावना हो सकती है परंतु चिकित्सकों के समन्वित प्रयासों से इस जोखिम को न्यूनतम कर दिया गया। कार्यपालक निदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अशोक जिंदल (रिटा) ने छात्र के चिकित्सा प्रबंधन से जुड़े सभी चिकित्सकों और नर्सिंग स्टॉफ को इस चुनौतीपूर्ण सर्जरी के लिए बधाई दी है।