उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी अपने आठों उम्मीदवारों की जीत से उत्साहित है. राज्यसभा के लिए नवनिर्वाचित बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी से लेकर आरपीएन सिंह तक ने कहा कि प्रदेश की जनता ने मन बना लिया है और सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटों पर बीजेपी की जीत होगी. पीएम मोदी ने देशभर में बीजेपी की 370 और एनडीए की 400 पार सीटों का टारगेट सेट किया है. यूपी में क्लीन स्वीप किए बिना ये हासिल नहीं किया जा सकता है. कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है, क्योंकि लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें यहीं हैं.
बीजेपी का 2024 में पूरा फोकस यूपी पर है, क्योंकि दो बार से दो तिहाई सीटें जीतकर सत्ता अपने नाम की थी. मिशन-80 को हासिल करने के लिए वो सियासी बिसात बिछाने में जुटी है. इसके लिए बीजेपी अपने कमजोर कड़ी को मजबूत करने में जुट गई है, जिसके लिए पूर्वांचल से पश्चिमी यूपी तक सियासी समीकरण को दुरुस्त किया है. ओम प्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान की वापसी कराकर पूर्वांचल तो आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी से गठबंधन कर पश्चिमी यूपी में सपा को झटका दिया है. राज्यसभा के चुनाव में सपा के आठ विधायकों को बीजेपी ने अपने पाले में खड़ा करके 2022 में हुए नुकसान का हिसाब बराबर करने के साथ-साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी 80 की 80 सीटें जीतने का पटकथा लिखी है.
लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने गठबंधन का कुनबा बढ़ा लिया है. अखिलेश यादव ने 2022 के चुनाव में जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती पेश की थी. सपा 47 सीटों से बढ़कर 111 पर पहुंच गई थी. लोकसभा के लिहाज से देखें तो सपा को 25 संसदीय सीटों पर बढ़त मिली थी और बीजेपी पीछे रह गई थी, जबकि 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद बीजेपी ने 62 सीटें जीती थी और उससे पहले 71 सीट जीती थी. सपा ने जिन दलों के साथ मिलकर बीजेपी को टेंशन देने का काम किया, बीजेपी ने 2024 के चुनाव में उन्हें अपने साथ मिला लिया है.
जयंत चौधरी के जरिए सपा पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण के दम पर बीजेपी से मुकाबला करना चाहती थी, लेकिन उससे पहले बीजेपी ने जयंत चौधरी को एनडीए खेमे में ले लिया है. इसी तरह सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर के जरिए विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल बेल्ट के कई जिलों में बीजेपी को खाता तक नहीं खोलने दिया था, वो अब भी अब एनडीए के पाले में खड़े हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने सपा को अलविदा कहकर अपनी अलग पार्टी बना ली तो दारा सिंह चौहान बीजेपी में वापसी कर चुके हैं. इस तरह बीजेपी ने पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्वांचल तक अपने गणित को बेहतर बनाने की कवायद की है ताकि विपक्ष की रणनीति को फेल करने के साथ-साथ अपने पक्ष में सियासी माहौल को मोड़ा जा सके.
बीजेपी ने सूबे में अपने गठबंधन को सपा से बढ़ा कर लिया है. सपा का गठबंधन सिर्फ कांग्रेस के साथ है जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ निषाद पार्टी, अपना दल (एस), सुभासपा और आरएलडी हैं. बीजेपी ने जिस तरह जातीय आधार वाले छोटे-छोटे दलों को अपने साथ लिया है, उसके एक मजबूत जातीय समीकरण बनाने की रणनीति है. बीजेपी इस बात को जानती है कि सूबे की 80 लोकसभा सीटें अकेले दम पर नहीं जीती जा सकती है, जिसके लिए तमाम छोटे-छोटे दलों का साथ लेना जरूरी है.