प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल गगनयान मिशन पर भेजे जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स के नामों का ऐलान किया था. आज 28 फरवरी को पीएम तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले के कुलसेकरपट्टिनम में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के दूसरे स्पेसपोर्ट की आधारशिला रखेंगे. दूसरे स्पेसपोर्ट पर प्राइवेट सेक्टर की तरफ से बनाए गए छोटे सैटेलाइट्स लॉन्च किए जाएंगे. वर्तमान में इसरो के पास एक अंतरिक्ष स्टेशन है – सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र जो आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित है. स्पेसक्राफ्ट को तमिलनाडु के विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए वरदान माना जा रहा है. आइए जानते हैं इस स्पेसक्राफ्ट की खासियत क्या है?
नया स्पेसपोर्ट सतीश धवन से कितना अलग?
जानकारी के मुताबिक नया स्पेसपोर्ट 2,000 एकड़ क्षेत्र को कवर करेगा और थूथुकुडी जिले में वृद्धि और विकास को बढ़ावा देगा. थूथुकुड़ी से रॉकेट लॉन्चिंग काफी सस्ती पड़ेगी क्योंकि अभी तक जितने भी पीएसएसवी रॉकेट पोलर ऑर्बिट में छोड़े जाते थे उन्हें श्रीहरिकोटा से निकलने के बाद पड़ोसी देश श्रीलंका के ऊपर से जाना होता था. लेकिन नए स्पेसक्राफ्ट की लॉन्चिंग के साथ इस डायवर्जन की जरूरत नहीं पड़ेगी.
यहां से लॉन्चिंग हुई तो रॉकेट को करीब 780 किलोमीटर की यात्रा कम करनी पड़ेगी. इसरो का प्रप्लशन कॉमप्लेक्स महेंद्रगिरि में स्थित है, जो कुलसेकरनपट्टिनम से बस 88 किमी दूर है. वहीं श्रीहरिकोटा से कॉमप्लेक्स 780 किमी दूर पड़ता है. थूथुकुड़ी भूमध्य रेखा यानी इक्वेटर के काफी करीब है. मतलब यह हुआ कि रॉकेट की लॉन्चिंग के बाद सैटेलाइट के उनकी कक्षा में पहुंचाने के लिए पृथ्वी के ज्यादा चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे. नतीजन समय बचेगा और इंधन पर आने वाला खर्च भी कम हो जाएगा.
ISRO का मकसद क्या है?
इसरो ने कुलसेकरनपट्टिनम स्पेसपोर्ट से कमर्शियल आधार पर छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की योजना बनाई है. श्रीहरिकोटा से छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने में ज्यादा खर्चा आता है क्योंकि रॉकेट को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. जितनी लंबी दूरी उतनी ज्यादा ईंधन की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप रॉकेट की पेलोड क्षमता कम हो जाती है. नए स्पेसपोर्ट से यह समस्या हल हो जाएगी. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि राज्य में कई इंडस्ट्रीज भी आएंगी और इससे हजारों नौकरियां पैदा होंगी, जिससे थूथुकुडी जिले को फायदा होगा.