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वसंत पंचमी से हुई 600 वर्ष पुरानी फागुन मड़ई मेला की शुरुआत, 800 से अधिक देवी-देवता होंगे शामिल

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HIGHLIGHTS

  • बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी मंदिर में वसंत पंचमी से हुई शुरुआत
  • त्रिशूल स्थापना के साथ ऐतिहािसक फागुन मड़ई की शुरुआत
  • छह सौ वर्ष से मना रहे फागुन मड़ई मेला पर्व

दंतेवाड़ा। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी मंदिर में 600 वर्ष पुरानी परंपरा अनुसार फागुन मड़ई की शुरुआत वसंत पंचमी से हुई। 11 दिन तक चलने वाले मड़ई में छत्तीसगढ़ सहित ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना से 800 से अधिक देवी-देवता सम्मिलित होंगे। मांई दंतेश्वरी मंदिर के प्रवेश द्वार पर डेरी गड़ाई रस्म की गई। गरुड़ स्तंभ के सम्मुख पूर्ण मंदिर के प्रमुख जिया हरेंद नाथ ने पूजा अर्चना के बाद त्रिशुल खंब को स्थापित किया।

यह रस्म 12 लंकवार (गायता, सेठिया, पेरमा, समरथ, कतियार, चालकी, भोगिहार, पडिहार, माधुरी, तुडपा, बोडका, लाठुरा) की उपस्थिति में हुआ। डेरी गड़ाई रस्म को देखने सुबह मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रही। त्रिशूल खंब गाड़ने से पूर्व पूजा अर्चना की गई।

मंदिर से मांईजी कार छत्र व लाठ निकाली गई। छत्र को नगर के मुख्य चौराहे पर लाकर रखा गया। माईजी की छत्र को जवानों द्वारा हर्ष फायर कर सलामी दी गई। छत्र पर आम का बौर का मुकुट बनाकर पहनाया गया। इस रस्म को आमा माउड रस्म कहा जाता है। टेंपल कमेटी के अनुसार इस वर्ष फागुन माह की 16 से 28 मार्च तक चलेगा।

छह सौ वर्ष पुराना है त्रिशूल

बताया गया कि 600 वर्ष से अधिक पुराने तांबे के त्रिशूल को मंदिर परिसर में गरूड़ स्तंभ के समक्ष स्थापित करने के बाद मांईजी का सरस्वती के रुप में पूजन होता है। त्रिशूल स्थापना के पीछे मांईजी के आदिशक्ति स्वरूप को भी माना जाता है। देवी भगवती का प्रतीक माना जाने वाला त्रिशूल शुद्घ तांबे से निर्मित है।
इतिहास के अनुसार राजा पुरषोत्तम देव वारंगल से त्रिशूल लेकर आए थे। पुजारी हरेंद्रनाथ जिया ने बताया कि प्रतिवर्ष वसंत पंचमी पर मां दंतेश्वरी मंदिर में वैदिक मंत्रोचारण के साथ त्रिशूल स्तंभ स्थापित किया जाता है। स्थापना के साथ ही दक्षिण बस्तर की ऐतिहासिक फागुन मंडई की शुरुआत हो जाती है। मेला समाप्त होने तथा आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई के दूसरे दिन त्रिशूल को वापस मंदिर में रख दिया जाता है।