जड़ से विभक्त होना ही आध्यात्म है, और यही मोक्ष है : प्रवीण ऋषि
रायपुर (वीएनएस) – 21 दिवसीय महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव अब अपने चरम पर पहुंच रहा है। लालगंगा पटवा भवन में परमात्मा के समोशरण का निर्माण हो रहा है। आनंद जन्मोत्सव, नवकार तीर्थ कलश अनुष्ठान जैसे शीर्ष आयोजनों के बाद रायपुर की धन्य धरा पर 21 दिवसीय महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव का अनुष्ठान का समापन होने जा रहा है। रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने कहा कि आज एक अनूठा माहौल हमें रायपुर में देखने को मिल रहा है। प्रभु महावीर की अंतिम देशना, जिसे सुनने के लिए देवताओं के साथ इंद्र उनकी धर्मसभा में पहुंचे थे, वही देशना विगत 24 अक्टूबर से लालगंगा पटवा भवन में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि के मुखारविंद से अनवरत गूँज रही है। आगामी 13 नवंबर को महावीर निर्वाण कल्याणक का शिखर दिवस मनाया जाएगा। 13 नवंबर को सुबह 5.25 बजे से लालगंगा पटवा भवन में शिखर दिवस का अनुष्ठान शुरू होगा। ललित पटवा ने सकल जैन समाज से प्रातः 5.25 से पहले धर्मसभा में उपस्थित होने का आग्रह किया है।
उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने शनिवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अनादि काल से यह चेतना अजीव (पदार्थ) की भक्ति करती है। ये जड़ की भक्ति इस संसार में दुःख का मूल कारण है। ये पदार्थ की भक्ति के हमारी अंतर चेतना में ज्ञान में, अनुभूति में, भावना के रूप में, शक्ति के रूप में संस्कार जो बने हुए है वही कर्म है। निर्वाण कल्याणक की अनुत्तरदेशन का एक अनूठी साधना का उपक्रम प्रभु प्रारंभ कर रहे हैं, उस दिव्या परिषद् को प्रभु अनादि काल की उनकी यात्रा का बोध करा रहे हैं। और बोध करते करते अनुभूति में तन्मय होते हुए वो जीव पदार्थ की भक्ति से मुक्त हो रहे हैं। जड़ से विभक्त होना ही आध्यात्म है, यही मोक्ष है। प्रभु महावीर अनुत्तर देशना की शिखर देशना में एक अनूठा वरदान बरसा रहे हैं कि अपनी चेतना पदार्थ की भक्ति से मुक्त हो जाए। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। 21 दिवसीय महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव अब अपने चरम पर पहुंच रहा है। लालगंगा पटवा भवन में परमात्मा के समोशरण का निर्माण हो रहा है। आज उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के 19वें दिवस लाभार्थी परिवार विजयकुमार राजकुमार वीर राज बोथरा परिवार (राजिम-रायपुर) तथा सहयोगी लाभार्थी परिवार श्रीमती मालती-हेमंत सेठ परिवार ने तिलक लगाकर श्रावकों का धर्मसभा में स्वागत किया।
पदार्थ का उपयोग करें, भक्ति नहीं :
धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि पदार्थ की भक्ति करना मतलब उसे भगवान समझना। और पदार्थ को जब व्यक्ति भगवान समझ लेता है तो वह चेतना को कभी प्रभु के रूप में स्वीकार नहीं कर पाता है। जिसने पदार्थ को पदार्थ के रूप में स्वीकार कर लिया उसे चैतन्य की अनुभूति होती है, चैतन्य की भगवत्ता का अहसास होता है। और यही अहसास उसे भगवत्ता के शिखर पर ले जाता है। उपाध्याय प्रवर ने आज श्रावकों को उत्तराध्ययन श्रुत के छत्तीसवें अध्याय की आराधना कराई। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि वर्ण गंध रस स्पर्श और आकाश ये 5 गुण होते हैं पुद्गल के। बिना आकर, गंध, रस, स्पर्श के पुद्गल नहीं होता, पदार्थ नहीं होता है। एक आकार में वर्ण गंध रस स्पर्श में से कोई एक हैं तो बाकी चार भी हैं। ये पांचों एक साथ रहते हैं, एक को खोज लिया तो बाकी चारों भी मिल जाते हैं। लेकिन अच्छी गंध वाले का रंग श्वेत हो, ऐसा जरुरी नहीं है। ऐसे अनेक प्रकार के अजीव के, पदार्थ की भक्ति करने के कारण जीव परमात्मा नहीं बनता। एक सूत्र जीवन में रखें कि मैं पदार्थ का उपयोग करूंगा, भक्ति नहीं। क्योंकि पदार्थ की पूजा करने वाला कभी परमात्मा का पुजारी नहीं हो सकता। जो इन्द्रियों से ग्रहण किया जा सकता है वह पदार्थ है। जिसे हम जानेंगे, उसकी भक्ति करेंगे। आज तक हमने पदार्थ को जाना, तो उसकी भक्ति करते रहे। जो मैंने नहीं जाना उसे ग्रहण करने को श्रद्धा कहते हैं। चेतना को हम इन्द्रियों के माध्यम से जान नहीं सकते, परमात्मा को हम किसी इन्द्रियों के माध्यम से जान नहीं सकते, लेकिन जब हम उन्हें स्वीकार करते हैं तो इसे श्रद्धा कहते हैं। जिन जीवों ने अजीव की भक्ति कर ली, वे सिद्ध हो गए। इसलिए जैसे अजीव की भक्ति पूरी होती है जो आत्माएं अजीव की भक्ति से विरक्त हो गए वो कैसे सिद्ध बनते हैं, परमात्मा इस अध्याय में उसका स्वरुप प्रदान करते हैं।
परमात्मा कहते हैं कि कोई भी सिद्ध हो सकता है। कहीं पर से भी सिद्ध हो सकता है। परमात्मा कहते हैं कि एक थर्ड जेंडर भी सिद्ध हो सकता है, स्त्री भी सिद्ध हो सकती है और पुरुष भी सिद्ध हो सकता है। छोटे से छोटे कद वाला भी सिद्ध हो सकता है, ऊँचे से ऊँचा कद वाला भी सिद्ध हो सकता है। मनुष्य क्षेत्र में एक भी जगह नहीं है जहाँ से जीव सिद्ध नहीं हुए। कोई पानी में से भी सिद्ध हो जाता है, आकाश में चलते हुए भी सिद्ध हो जाता है। सिद्ध होने की अनंत संभावनाएं हैं। परमात्मा ने थर्ड जेंडर, स्त्री पुरुष को सिद्ध होने का अधिकार दिया है क्योंकि ये सब शरीर की रचना है, लेकिन आत्मा का कोई जेंडर नहीं होता है। जो ऊंचाई है वो शरीर की हैं, आत्मा की कोई ऊंचाई नहीं होती। इसलिए आत्मा कहीं पर से भी सिद्ध हो सकती है।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने कहा कि आज एक अनूठा माहौल हमें रायपुर में देखने को मिल रहा है। श्रीमत उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना का अनुष्ठान के अंतिम चरणों में हम सभी चल रहे हैं। 13 नवंबर को सुबह 5.25 बजे से लालगंगा पटवा भवन में महावीर निर्वाण कल्याणक के शिखर दिवस का अनुष्ठान शुरू होगा।उन्होंने सकल जैन समाज से इस अनुष्ठान में सपरिवार जुड़ने का आग्रह किया। उन्होंने महावीर निर्वाण कल्याणक समिति की ओर से सभी लाभार्थियों का आभार व्यक्त किया। धर्मसभा में गौतमपात्र की स्थापना हो गई है, उपाध्याय प्रवर ने श्रावकों से निवेदन किया है कि इस पात्र में सहपरिवार सूखा मेवा समर्पित करना है, जिसे महावीर निर्वाण कल्याणक के शिखर दिवस पर प्रसादी के रूप में वितरित किया जाएगा। निर्वाण कल्याणक की आराधना के लिए सकल जैन समाज को आमंत्रण है।