Home धर्म - ज्योतिष योजना धन में नहीं, धर्म में व्यय करो- आचार्य विशुद्ध सागर

योजना धन में नहीं, धर्म में व्यय करो- आचार्य विशुद्ध सागर

31
0
बड़ौत – दिगम्बराचार्य श्री. गुरु विशुद्धसागर जी महाराज ने धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि प्रभु दर्शन से निज का दर्शन होता है। तथा गुरुवाणी श्रवण से वस्तु के वस्तुत्व का, वस्तुस्वरूप का सत्यार्थ- बोध होता है।” मनुष्य-जीवन प्राप्त कर जिसने यथार्थ वस्तु स्वरूप नहीं समझा, ज्ञान प्राप्त नहीं किया, सम्पक सम्पत्ति प्राप्त नहीं की, गुरु सेवा, प्रभु भक्ति और संयम स्वीकार नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है।
मनुष्य जीवन उनकी का श्रेष्ठ है, जो मनुष्य जन्म प्राप्त कर संयम- साधना, तपश्चरण से जन्म-जरा- मृत्यु जैसे महा रोगों का क्षय करता है। योवन प्राप्त कर जो भोगों में लगा है, उसका जीवन व्यर्थ है। तन को वेतन में नहीं, धर्म में लगाओ। वैभव छोड़ो, के भव होने का पुरुषार्थ करो। संघनित जीवन ही श्रेष्ठ है।
इस भव में ऐसा पुरुषार्थ करो जिससे अगला-भव सुखद, आनन्दपूर्ण एवं शान्तिमय हो। वर्तमान-भव ही भविष्य के निर्माता होते हैं। भावों से ही बंध होता है, भावों से ही निर्बन्ध होता है। भावों से ही जीव संसार भ्रमण करता है और भावों से ही कर्मों का क्षय कर शांति प्राप्त करता है।
जीवन का पल-पल मूल्यवान है, क्षण- क्षण सावधानी पूर्वक जीवन जियो। स्वयं के भाव ही विशुद्धि के कारण हैं और स्वयं के कु-भाव ही अशुद्धि में सहायक हैं। चित्त विशुद्ध करो, चारित्र पवित्र करो, पवित्र मार्ग पर चलो। जियो और जीने हो। यही मनुष्य जीवन का सार है।संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।
       सभा मे आनंद जैन खद्दर वाले, अतुल जैन, सुभाष जैन बीड़ी वाले, प्रदीप जैन सबगे वाले,धनेंद्र जैन,विनोद एडवोकेट, विमल जैन,अशोक जैन आदि उपस्थित थे।