- ज्ञान खोजने कि बात है और आस्था खोदने कि बात है
- आस्था से आपका रास्ता प्रशस्त हो जायेगा
डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आत्मा का लक्षण उपयोग कहा है | उपयोग के आभाव में हम कभी भी आत्मा कि खोज नहीं कर सकते | दुनिया के सारे यंत्र मिल जाये तो भी आत्मा को पाने कि क्षमता उसमे नहीं होगी | हम किसी वस्तु को आत्मा कह कर के बोल भी नहीं सकते है इसलिए उसको (आत्मा) को उपयोग कहा है | उपयोग तो किट – पतंगों में भी है | मनुष्य अथवा जिसके पास संज्ञयी पन है मन है वही कथंचित पहचान सकता है | हमें आत्मा को देख करके दूसरे के सामने परिचय के लिये रखना यह हमारा अविवेक माना जायेगा | हमें अपने आपको पहचानना है हमें अपने आपको इसलिए पहचानना है कि हम अन्य पदार्थों से हटकर अपना जीवन व्यतीत करें | आप लोग अपना जीवन व्यतीत तो कर रहे है, जीवन अतीत भी हो रहा है, भविष्य सामने भी खड़ा है लेकिन इससे संतुष्टि नहीं मिल पायेगी | उपयोग के माध्यम से हम आत्मा को जान तो लेते हैं लेकिन उसे पा नहीं सकते | जानना अलग है और पाना अलग है| इसलिए अब उस ज्ञान कि भी मुझे इच्छा नहीं लगती क्योंकि उसके माध्यम से मै जब तक अन्य पदार्थों से अपने आपको अपनी ओर लाऊ या ला सकता हूँ तो वह मेरी दृढ निश्चय ही एक मात्र कारण है | इसलिए आपको अपने आपको पाना है तो दूसरे कि चिन्ता पहले न करीये क्योंकि आप जैसे अपने आप को भूलकर दूसरों कि चिन्ता कर रहे है | सभी दूसरे कि ही चिन्ता में है, अपने आप के कारण किसी को चिन्ता होती नहीं और आँखों में पानी भी नहीं आता | मैं उस आँखों के पानी को पहचानना चाहता हूँ वह एक मात्र अपने लिये हो | दूसरे के दुःख को दूर करने के लिये बार – बार कहता है कि मै दुखी हूँ | दूसरे के दुःख को, वेदन को दूर करने के लिये भी मै सोचता हूँ तो मै उसके दुःख को दूर करने के लिये सक्षम हूँ | यदि मै ऐसा थोडा भी सोचता हूँ तो उसके दुःख के अनुपात में कमी आ जाएगी | यदि आप यह करना चाहो या करते हैं तो बहुत बड़ा काम हो गया | यदि आप अपने लिये भी रो रहे हो प्रभु के सामने कि कोई उपलब्धि नहीं हो पा रही है तो वह दूसरा व्यक्ति जो दुखी है वह चाहता है कि दुःख दूर हो जाये तो उसके लिये हम कुछ कर नहीं सकते ऐसा नहीं, रो तो सकते है, दो आंसू दो गिरा सकते हैं | ज्ञान बहुत चिल्लाता है कि मै सब जानने वाला हूँ | ज्ञान चिल्लाता है जब स्वयं पर या दूसरे के ऊपर आपत्ति आती है | ज्ञान बहुत चिल्लाता है इसलिए मैं उसको कभी नहीं चाहूँगा और ध्यान को चाहूँगा | और ऐसे ज्ञान को रखने वाले से दूर से ही चला जाऊ ताकि मेरा गलत असर उनके ऊपर न पड़े | असर हमेशा – हमेशा पड़ता है क्योंकि सर होने में पड़ता है | मै प्रभु के चरणों में सर झुकाना चाहता हूँ | और उस असर से मै दूर होना चाहता हूँ | अब आगे ज्ञान जब चिल्लाता है आपत्ति आने पर अब आस्था क्या कहती है ? आस्था बोलती नहीं है किन्तु आस्था गहरा असर कर जाती है | ज्ञान सब करता है यह हम समझते है पर आत्मा नीव पर होती है और ज्ञान ऊपर शिखर पर चढ़ना चाहता है लेकिन लुढ़ककर निचे आ जाता है | ज्ञान को आस्था के सामने सर झुकाना पडता है| सुना है मूक माटी में यह आता है कि “जहाँ आस्था है वहाँ रास्ता है “| “ज्ञान खोजने कि बात है और आस्था खोदने कि बात है”| हम खोज न करे अपने ओज को बीना मतलब कम न करे| हमारी आस्था जैसे – जैसे दृढ़वती होती है ज्ञान झुकने लगता है मन का झुकना हो जाता है | बिना मन के झुकना कोई झुकना नहीं | जाते – जाते तेली के बैल के भांति आपकी आज कि यात्रा लम्बी हो गयी जब आँखों से पट्टी हटाते हैं तो सुबह जहाँ था वहीँ है | आस्था कि छोटी सी बात आपके सामने रखा | किसी ने कहा कि आप आस्था – आस्था कि ही बात करते हो, विज्ञान कि बात करो | मैं नहीं करूँगा विज्ञान कि बात यदि उसके आगे वीतराग विशेषण लग जाये तो हो सकता है | आज विज्ञान का युग है तो हम आस्था को विपरीत पालडे में नहीं रखेंगे | आस्था तो धर्म कांटा के समान ऊपर रहती है न ही भारी होती है और न ही हलकी होती है वो तो मध्यस्थ रहती है | आप निचे बैठे हो और प्रभु ऊपर बैठे है इसलिए आप आस्था से दुकान चलाओ, चिल्लाओ नहीं, एक भाव रखो | आस्था से आपका रास्ता प्रशस्त हो जायेगा | धर्म कांटा कभी इधर – उधर नहीं जाता है लेकिन दूकानदार कि कुशलता से वह इधर – उधर हो सकता है इसे डंडी मारना भी कहते हैं | एक चालनी को तीन ओर से रस्सी से बांधकर कुए में डालते हैं और उससे पानी निकालकर पिलाने को कहते हैं | जब चालनी को ऊपर खीचकर लाते हैं तो उसमे बर्फ ऊपर आ जाती है यह आस्था के ही कारण हुआ | विज्ञान में जादू आ नहीं सकता है और धर्म इसको कभी अपने पास रखता ही नहीं है | जादूगर आता है और मिट्टी को उठाकर उसमे फूकता है और वह मिट्टी को चांदी के सिक्कों में परिवर्तीत कर देता है | इसे देखकर एक व्यक्ति कहता है कि ऐसे तो हमारा देश फिर से सोने कि चिड़िया बन जायेगा | फिर वही जादूगर कुछ समय बाद वहाँ सभी सेठ, साहूकार से अठ्ठनी, चवन्नी मांगता फिरता दिखाई देता है | वह पानी आस्था के प्रभाव से बर्फ बन गया | यह आस्था कि बात है आकर पालती मारकर बैठ गए, धन्य हो इस वक्तव्य को सुन लिये | जहाँ से भी आये हो वहाँ के लोगो को और आचार – संहिता में प्रचार – प्रसार कर रहे लोगो को भी आस्था कि बात बताना | जिससे इनका दिमाग फिर जाये | जिससे जहाँ आपका दिमाग लगा है उसको हटाकर आस्था के रास्ते पर अवश्य ही आ जायेंगे | यह सब बहुत से लोग विदेशों में जाकर करोडो – अरबो रूपए देकर सिख रहे है | वे ये सब यही सिख सकते हैं जिससे हमारे देश का पैसा यहाँ जन कल्याणकारी कार्यों में सदुपयोग हो जायेगा और देश का पैसा देश में ही रहेगा | विधानसभा चुनाव हेतु नामांकन दाखिल करने के पश्चात आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी के दर्शन के लिये छत्तीसगढ़ के राज्य मंत्री श्री ताम्रध्वज साहू जी कांग्रेस कार्यकर्ताओ एवं परिजनों के साथ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ आये|
आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्रीमान महावीर कुमार जी जैन कोटा राजस्थान निवासी परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन, कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, कोषाध्यक्ष श्री सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन (महामंत्री), चंद्रकांत जैन (मंत्री ) ,मनोज जैन (ट्रस्टी), सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),सिंघई निशांत जैन (ट्रस्टी), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |