छ.संभाजीनगर – चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी गुरुदेव की 68वी पुण्यतिथि व मुनिदीक्षा के105 वर्ष पूरे होने पर त्रिदिवसीय संयम शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में भारत वर्षीय संयम शताब्दी महोत्सव समिति व आचार्य श्री गुप्तिनंदी वर्षायोग समिति2023धर्मतीर्थ छ.संभाजीनगर में परम पूज्य वात्सल्य सिंधु प्रज्ञायोगी दिगंबर जैनाचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव ससंघ के पावन सान्निध्य में विनयांजलि सभा का आयोजन किया गया ।जिसमें सभी जैन मंदिर के पदाधिकारी व सभी सामाजिक संस्थाओं ने आचार्य श्री शांतिसागर गुरुदेव के प्रति विनयांजलि समर्पित की। इससे पूर्व आर्यिकाश्री आस्थाश्री माताजी द्वारा रचित चारित्र चक्रवर्ती विधान उन्हीं की व आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी व की मधुर स्वर लहरियों में किया गया।इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री गुप्तिनंदी जी गुरुदेव ने चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी गुरुदेव के चारित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य श्री शांतिसागर जी पशु-पक्षियों के संरक्षक थे।हरित क्रांति के पोषक व शाकाहार के प्रवर्तक थे।गाँव के जमींदार पुत्र के पुत्र होकर भी स्वयं खेती करते थे।फसल आने पर भी वे अपने खेत में से कभी भी पक्षियों को नहीं भगाते थे और खेत के सभी वृक्षों पर उनके पीने के लिए पानी की व्यवस्था भी स्वयं कर देते थे।जबकि अन्य सभी किसान पक्षियों को उड़ाते रहते थे और सारे पक्षी भी उड़कर सातगौंडा के खेत में आकर बड़े आराम से दाना चुगते और पानी पीते रहते थे ।उसके बाद भी अन्य सभी किसानों से ज्यादा आचार्य श्री के खेत में अनाज निकलता था।आचार्य श्री शांतिसागर जी वैराग्य क्रांति के पुरोधा हैं।जब विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण से लगभग पंद्रह सौ वर्षों तक यह भारत भूमि रक्त रंजित होती रही फिर दो सौ साल तक यह देश फिरंगी शासन का गुलाम रहा तब संपूर्ण उत्तर भारत में दिगंबर जैन मुनियों का लगभग अभाव सा हो गया और दक्षिण भारत में भी गिने चुने जैन मुनि दिखाई देते थे।ऐसे समय आचार्य श्री शांतिसागर जी ने स्वयं देवेंद्र कीर्ति मुनि से क्षुल्लक-ऐलक व मुनिदीक्षा ग्रहण की।अपनी साधना को आगे बढाते हुए सर्वप्रथम उन्होंने कुछ साधकों को मुनिदीक्षा देकर उस समय का विशाल सप्तऋषि मुनिसंघ तैयार किया। ग्रंथालयों में बंद पडे जीर्ण-शीर्ण शास्त्रों को बाहर निकालने के लिए कठोर तपस्या की।अनेक अनशन करने के बाद भट्टारकों को समझाकर उनसे ही जैन ग्रंथों का प्रकाशन कराया।ताम्रपत्र पर जैन ग्रंथों को अंकित कराकर उन्हें हमेशा के लिए सुरक्षित कर दिया।संपूर्ण भारत के सभी प्रांत, नगर, ग्रामों में विहार करके दिगंबर जैन मुनिधर्म का प्रचार किया। दिल्ली में जब गोरे अफसर ने ट्रेफिक पुलिस ने उन्हें चाँदनी चौक में विहार करने से मना किया तब आप चाँदनी चौक के बीचों बीच ही अपने संघ के साथ बैठ गए।उस समय आचार्य श्री ने क्रांतिकारी आवाज उठाई।आपने कहा यह भारत हमारा है।यह धरती हमारी माता है।दिगंबर जैन मुनि भारत माता की ही संतान हैं।देश के ही अविभाज्य अंग हैं।उन्हें सारे देश में सब जगह स्वतंत्र विहार करने का पूरा अधिकार है। तब बहुत जल्दी दिल्ली शासन को यह कानून पास करना पडा कि जैन मुनियों को भारत में सब जगह स्वतंत्र घूमने का पूरा अधिकार है।और भी अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन आचार्य श्री ने किये*। उनके सम्मान में आज हम यही कहेंगे-*जहाँ में खुश्बू ना होती अगर गुलाब न होते। यह भारत मुक्त ना होता अगर संग्राम ना होते। हृदय की बात कहता हूँ जरा तुम ध्यान से सुनना। अभी मुनिराज ना मिलते जो आचार्य शांतिसागर न होते* उन्होंने साधुओं का पुनर्निर्माण किया।अब आज के भौतिकवादी युग में अहिंसा का शंखनाद करने के लिए अहिंसक आदर्श नागरिक तैयार करने की नितांत आवश्यकता है।इस उद्देश्य से ही यहाँ दशलक्षण महापर्व के अंतर्गत भव्य *रत्नत्रय श्रावक संस्कार ध्यान साधना शिविर* का आयोजन किया जा रहा है।उसमें सम्मिलित होना ही उन आचार्य श्री के लिए जीवंत श्रद्धांजलि होगी।