रायपुर – उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि भूत और वर्तमान हकीकत है, भविष्य संभावना है। और इस संभावना के आकाश में जो उड़ता है वह मनुष्य कहलाता है। बीज क्या है? पशु के लिए भोजन, और किसान के लिए फसल। बीज को फसल बनाने की संभावना किसान के पास है, न कि पशुओं के। किसान उस बीज से फसल तैयार करता है, वहीं पशु उसे खा जाते हैं। संभावना केवल मनुष्य के लिए है। पशुओं के लिए नहीं। वैसे ही मैनासुन्दरी ने कुष्ठ रोगी श्रीपाल से विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार किया। उसने कहा कि वह कुष्ठ रोगी है, लेकिन क्या यह रोग हमेशा रहेगा? उसके स्वस्थ होने की संभावना भी है । उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी । बुधवार को लालगंगा पटवा भवन में श्रीपाल-मैनासुन्दरी की कथा सुनाते हुए प्रवीण ऋषि ने पूछा कि मैनासुन्दरी के विवाह के लिए कौन जिम्मेदार है? पिता या पुत्री? अगर विवाह मैनासुन्दरी के कर्मों से हो रहा है तो हम उसके पिता पर उंगली क्यों उठाते हैं? श्रीपाल किसके कर्मों से कुष्ठ रोगी बना? हमारे जीवन में कर्मों की का भूमिका क्या है? श्रीपाल कुष्ठ रोगियों के साथ रहता था, लेकिन उसे लेकर उसकी माँ भागी थी भय से। जो परिस्थिति बनती है, उसमे क्या निर्णय लेना मेरा कर्मा है। कुष्ठ रोगी से विवाह का निर्णय प्रजापाल राजा का है, मैनासुन्दरी तो शिकार है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि तीन तर्क हैं; करना, करवाना और अनुमोदन। साँस लेना, बोलना करना है। कोई बुलवाए तो बोलना, कोई करवाए तो करना ये करवाना है। करने, नहीं करने की अनुमति देना अनुमोदन है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा पाप-पुण्य का बंद होता है अनुमोदन में। और अवसर का सदुपयोग या दुरूपयोग तय करता है पाप-पुण्य का उदय। मैनासुन्दरी का विवाह कहां करना है, ये पिता का निर्णय है। वहां कैसे रहने है, ये पुत्री का निर्णय है। उन्होंने कहा कि अनुमोदन में सुरक्षा है, इसमें जिम्मेदारी आज्ञा देने वाले की रहती है । कहानी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि जब मंत्री के साथ राजा बाहर घूम रहा था तो उसने कुष्ठ रोगियों का दल देखा। बीच में एक युवक बैठक हुआ था, उसके ऊपर छत्र था। राजा ने जब पूछा तो उसे पूरी कहानी पता चली। तो उसने सोचा कि बेटी की परीक्षा ली जाए। मैनासुन्दरी ने कहा था कि आप जहां मेरा विवाह करेंगे मैं वहां खुश रहूंगी। यही सोचकर राजा ने मैनासुन्दरी का विवाह श्रीपाल से कराने का निर्णय लिया। जब यह बात नगर में फैली तो सभी ने इसका विरोध किया। सखियों ने मैनासुन्दरी से कहा कि पिता को मना लो, माता ने भी कहा। लेकिन मैनासुन्दरी ने कहा कि कुष्ठ रोगी के साथ विवाह हो सकता है, लेकिन वह हमेशा कुष्ठ रोगी रहेगा, ऐसा नहीं है। जो आता है, वो जाता भी है। उसने कहा कि आप निश्चिंत रहें, मैं सुखी रहूंगी । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग 23 अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।