रायपुर – लेश्या, या जिसे सरल भाषा में आभामंडल या औरा (aura) कहते है यह व्यक्ति की अंतरात्मा में तरंगें पैदा कर देती है। जिस व्यक्ति का आभामंडल सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहता है, लोग उसके प्रति आकर्षित होते हैं। वहीं जिसका आभामंडल नकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है, उससे लोग दूर भागते है। लालगंगा पटवा भवन में उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि लेश्या वे विज्ञान का ज्ञान दे रहे हैं। प्रवचन माला में अब तक प्रवीण ऋषि ने नीच लेश्या, या कहें नकारात्मक औरा के बारे में बताया। उपाध्याय प्रवर अब उच्चा लेश्या (सकारात्मक औरा) का वर्णन कर रहे हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी। बुधवार को उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि सुगति-कुगति, सुमति-कुमति और सद्गति-दुर्गति का आधार लेश्या है। कृष्ण, नील और कपोत लेश्या कुगति, कुमति और दुर्गति का कारण है। इन तीन लेश्या में रहने वाले व्यक्ति को आप कैसे भी माहौल में रखे, वे उसे दूषित ही करेंगे। वहीं तेजो, पद्म और शुक्ल लेश्या सुगति, सुमति और सद्गति का कारण है। इस लेश्या वाले को आप कितने भी कड़वाहट भरे महौलो में रख दो, उसकी कुमति नहीं हो पाती है। जैसी भी परिस्थिति हो उसकी मति कुमति नहीं हो पाती है। और उस सुमति के लिए सबसे पहले धर्म के प्रति दृढ़ता चाहिए। उन्होंने कहा कि आप लोगों ने विजयसेठ-सेठानी की कहानी तो सुनी हो होगी, ऐसा ही एक चरित्र पिछले सदी में भारत में हुआ था। उनका नाम है जयप्रकाश नारायण और प्रभावती। जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट थे। उनकी सगाई प्रभावती के साथ हुई थी। जयप्रकाश महात्मा गांधी को पसंद नहीं करते थे। प्रभावती महात्मा गांधी के संपर्क में आईं। महात्मा गांधी के प्रभाव में अगर कोई सरल आत्मा आ जाए तो वह उनसे भी दो कदम आगे पहुँच जाता है। और प्रभावती का मन हुआ कि मुझे ब्रह्मचारिणी बनाना है। उन्होंने महात्मा गांधी से बात की, तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी सगाई हो चुकी है, पहले जयप्रकाश से आज्ञा लो। सन्देश गया और जयप्रकाश साबरमती आश्रम पहुंचे, लेकिन अंदर नहीं गए। दोनों के बीच लंबी बात चली। प्रभावती ने अपने भाव रखे और आज्ञा मांगी। उन्होंने कहा कि आप दूसरी शादी कर सकते हो। जयप्रकाश ने कहा अगर तुमने इस पथ पर चलने का मन बना लिया है तो मैं भी ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा। रिश्ता हमारा यही रहेगा, लेकिन हम दोनों ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। ये प्रभाव है तेजो लेश्या का। उपाध्याय प्रवर ने प्रवचन माला को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अगर किसी व्यक्ति का क्रोध, अहंकार माया आपको प्यारा लगे, सुहाना लगे तो उस व्यक्ति की पदम् लेश्या है। पद्म मतलब कमल का फूल। उनका गुस्सा फूल के समान होता है। ये व्यक्ति अगर किसी पर क्रोध भी करते हैं तो सामने वाले को अच्छा लगता है।ये व्यक्ति बात को तानते नहीं है। हम क्या करते है जब कोई झगड़ा होता है? हम उस झगड़े को अपने साथ पकड़कर रखते हैं। लेकिन पदम् लेश्या वाला व्यक्ति आगे बढ़ जाता है। अगर जैन शब्दावली में बोलें तो इनका कषाय संजोलान कषाय है। इस कषाय के कारण ही इंद्रभूति गौतम प्रभु महावीर के साथ रह पाए। पदम् लेश्या का कषाय खजूर की तरह मीठा है। इनका व्यवहार मधुर रहता है। बोलते भी मीठा हैं, और इनका गुस्सा भी मीठा होता है। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सिद्ध होना है तो सीधा बनो, सरल व्यक्ति ही सिद्धि प्राप्त करता है। क्रोध, अहंकार, लोभ और माया को सुहाना रखो।
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि लेश्या पर प्रवचन 8 अक्टूबर तक चलेगा। 9 अक्टूबर से श्रीपाल-मैनासुन्दरी का प्रसंग शुरू होगा जो 23 अक्टूबर तक चलेगा। वहीं 24 अक्टूबर से 14 नवंबर तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।