इंदौर – तत्वार्थ सूत्र के पहले सूत्र अनुसार सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र रतन त्रय मोक्ष मार्ग का पहला कदम है ।पहले कदम के बाद दूसरा कदम, फिर तीसरा कदम अगले कदम चलते-चलते आप रत्नत्रय धर्म को प्राप्त कर निर्वाण तक सिद्धालय जा सकते हैं। पूजन किस प्रकार करना चाहिए, दर्शन किस प्रकार करना चाहिए यह श्रावक के मूल कर्तव्य हैं। भगवान के दर्शन अभिषेक में भगवान के गुणों का स्तवन करना चाहिए, कि जिस प्रकार आप केवल ज्ञानी है, मैं भी यही चाहता हूं कि आपकी भांति संसार को जीतकर मुक्त होकर जयवंत बनू।जिन दर्शन ,पूजन में भगवान का मन वचन काय से गुणगान करें । जिनालय में श्रेष्ठ मानव कुल का मन रखें क्योंकि भगवान के अवलंबन से आपको धर्म चेतना प्राप्त होगी इसी से सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र प्राप्त होगा। यह मंगल देशना आचार्य श्री वर्धमान सागर जी ने हूमड़ भवन उदयपुर की धर्म सभा में प्रगट की।
आचार्य श्री ने प्रवचन में बताया कि 16 कारण पर्व 10 लक्षण पर्व धार्मिक त्योहार में आपको धर्म देखने, श्रवण करने और समझने का अवसर मिला । श्रेष्ठतम से श्रेष्ठतम मानव जन्म प्राप्त किया है, जिनेंद्र भगवान और जिन शासन ,जिन धर्म कई जन्मों के संचित पुण्य से प्राप्त हुआ है । भगवान के दर्शन कर दर्पण रूपी स्वरूप का चिंतन करें और भगवान से प्रार्थना करें कि मैं संसार के परिभ्रमण से थक गया हूं, मेरे कर्मों, बुराइयों का नाश हो आचार्य श्री ने कथानक के माध्यम से बताया कि सम्मेद शिखर की यात्रा में एक श्रावक ने स्वर्ण भद्र कुट कुट पर यही प्रार्थना की मेरा सर्व विनाश हो जावे अर्थात मेरी बुराइयों का मेरे कर्मों का नाश हो। और वही श्रावक आगे चलकर हमारे शिक्षा गुरु आचार्य कल्प श्री श्रुत सागर जी बने। जिन्होंने दीक्षा के पूर्व श्वेतांबर कुल से दिगंबर जैन धर्म को अपनाया और आचार्य श्री वीर सागर जी से दीक्षा लेकर 12 वर्ष की सल्लेखना धारण कर ग्रीष्म ऋतु में 8 दिन के उपवास की यम संलेखना से उत्तम समाधि मरण को प्राप्त किया। शांति लाल वेलावत सुरेश पद्मावत पारस चितोड़ा अनुसार आचार्य श्री के प्रवचन के पूर्व मुनि श्री हितेंद्र सागर जी का प्रवचन हुआ। कुशल संचालन प्रकाश सिंघवी ने किया। पूर्वाचार्यों का चित्र अनावरण, दीप प्रवज्जलन,आचार्य श्री के चरण प्रक्षालन और जिनवाणी पुण्यर्जाक परिवारों द्वारा किया गया।