रायपुर – राग द्वेष से अपने को छुड़ाने का नाम त्याग है। त्यागना प्राणी का नैसर्गिक नियम है। वृक्ष में पत्ते, फल, फूल और वृक्ष उनका त्याग कर देता है। गाय जब तक अपने दूध का परित्याग नहीं कर देती, उसे बेचैनी रहती है। संग्रह का विमोचन करने पर ही स्वस्थता और ताजगी आती है।यदि हमारे आगमन का द्वार खुला रहे और निकासी न हो, तो रुका हुआ पानी सूख जाता है, सड़ जाता है। *जो वृक्ष अपने फलों को लुटाते हैं, उनमें बार-बार फल आते हैं और जो अपने फलों को छिपाते हैं,, वे समूल नष्ट हो जाते हैं।* यह सारे प्रकृति के उदाहरण हमें त्याग करने की प्रेरणा देते हैं। संग्रह ही जीवन को दुखदायी बना देता है, जबकि त्याग जीवन को स्वस्थ और संतुलित बनाता है । धन और धर्म का अपना-अपना महत्व है। किंतु धन धन ही है और धर्म धर्म ही है। धन हाथ का मैल है,, इसलिए उसे जीवन का सर्वस्व नहीं मानना चाहिए। *धर्म हमारे लिए सिर की टोपी है और धन पांव का जूता है।* जूते और टोपी की स्थिति में जितना फर्क है, उतना ही बड़ा फर्क धन और धर्म में है। टोपी, सम्मान मर्यादा की प्रतीक है जिसकी सार-संभाल हम प्राणपन से करते हैं, किंतु जूता, जूता ही है — उसकी कीमत पांव में पहनने और बाहर उतारने से ज्यादा नहीं है। जिसने त्याग किया है संसार में, उसका सम्मान हुआ है। जिसने संग्रह किया, उसका संसार में पतन हुआ है । यही कारण है कि जल का दान करने वाले मेघ सदैव ही ऊपर रहते हैं और संग्रह करने वाला समुद्र सदा ही नीचे रहता है।
- सोलह कारण की पूजन में भी कहा है —
दान देय मन हर्ष विशेषे, इह भव जस, परभव सुख पेषे ।।
त्याग और दान का सही प्रायोजन तभी सिद्ध होता है जब हम जिस चीज का त्याग कर रहे हैं या दान कर रहे हैं, उसके प्रति हमारे मन में किसी प्रकार का मोह या मान सम्मान पाने का लोभ न हो। त्याग के बिना मनुष्य की शोभा नहीं होती। बिरले लोग ही त्याग धर्म को अपनाकर आत्मिक निधि प्राप्त करते हैं।
त्यागो हि परमो धर्मस्, त्याग एव परं तपः।
त्यागाद् इह यशो लाभः, परत्राभ्युदयो महान् ।।
अर्थ – त्याग ही परम धर्म है, त्याग ही परम तप है, त्याग से ही इस जगत में यश का लाभ होता है,, और परलोक में महान अभ्युदय की प्राप्ति होती है।पंकज भैया ने उक्त प्रवचन आज वर्णि भवन मे दिए.आज सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य शीलचंद प्रभात कुमार जैन परिवार को प्राप्त हुआ.पारसनाथ मंदिर में आज झांझ मंजीरा से प्रभु की भव्य आरती का आयोजन किया गया.पर्व राज प्रयुषण पर्व मे तप आराधना करते हुये विमल सिंघई एवं अरुणा जैन के द्वारा सोलहकारण व्रत के 30दिन के उपवास किये जा रहे है. पूजा पहड़िया के 11दिन के उपवास चल रहे है.सुजीत जैन अनुभव जैन, अभिजीत चौधरी,विक्रांत जैन, हर्षित जैन, आर्जव जैन,रवि जैन,कामिनी चौधरी,रिया गदिया,नीलम जैन संगीता सिंघई,कुमारी सुमन जैन कुमारी सृष्टि जैन कुमारी संस्कृति जैन कुमारी श्रेया नाहर के दस उपवास चल रहे है. अध्यक्ष किशोर सिंघई ने जानकारी देते हुये बताया सभी 18लोगों की तप आराधना अच्छी चल रही है. इनके अलावा भी अनेक लोग शक्ति अनुसार व्रत उपवास एकासन कर धर्म प्रभावना मे लगे है.सभी व्रतीयों का पाड़ना एवंम सम्मान सामूहिक रूप से जैन भवन मे समाज के द्वारा किया जायेगा.