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सबसे भयंकर है ईर्ष्या की आग, आदमी जलता ही रहता है : प्रवीण ऋषि

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  • माता-पिता को सुधारने के लिए 30 सितंबर से शुरू हो रहा है अर्हम पेरैंटिंग शिविर

रायपुर – जीवन को बदल कर रख देने वाली प्रभु महावीर की देशना ‘लेश्या’ को समझने के लिए,उसे जीने के लिए लालगंगा पटवा भवन में उपास्थि श्रोतागणों को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि एक दीपक है जिसका रंग नहीं है, और एक ज्योत है, उसका भी रंग नहीं है। इनके चारों ओर अलग अलग आरंग के कांच लगे हैं। बाहर जो उजाला आएगा वह उस कांच के रंग का आएगा। और अंदर जो रौशनी जाएगा कांच के रंग की जायेगी। ये कांच का रंग है, इसे लेश्या कहते हैं। और जो कांच है वह कषाय और योग से बना है। अनंतानुबंधी कषाय का कांच काला रहता है, जो भी  न तो रौशनी अंदर आती है, और न ही अंदर की रौशनी बाहर जाती है। काला रंग ही फैलता है। काला कांच है तो ज्ञान कितना बाहर आएगा? चरित्र कितना बाहर आएगा? ख़ुशी कितनी बाहर आएगी? बाहर से भी अंदर कुछ नहीं जाता है। ऐसा कृष्ण लेश्या में होता है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।मंगलवार को उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कृष्ण लेश्या वाला व्यक्ति सबसे पहले नकारात्मक चीजें देखता है। प्यार भी करता है तो यह सोचकर कि सामने वाला मुझे कितना प्यार करेगा। संबंध में शर्त लागू हो जाती है। झटक देता है तो भी तीव्रता से। हमें अपने अंदर इस कृष्ण लेश्या के ढाँचे को तोड़ देना है। जैसे गाड़ी चलाने के लिए सड़क और ड्राइवर की आवश्यकता है। हमारा जीवन गाड़ी है, कषाय ड्राइवर है, सड़क लेश्या है। अगर आप ड्राइवर को बदल सकते हैं तो बदलें। अगर सड़क ठीक नहीं है तो आपको अपनी गाड़ी और ड्राइवर को सही रखना पड़ेगा। सड़क ठीक नहीं है तो क्या आप सड़क को समाप्त कर देंगे? सड़क सपाप्त कर दी तो गाड़ी कहाँ चलेगी? सड़क बदलें, यह आसान है। आप अपने घर में एक नियम बना लें कि कोई जोर से नहीं बोलेगा। गुस्सा भी करना है, तो धीमे, आवाज नहीं आनी चाहिए। किसी को छोड़ना है तो तीव्रता से नहीं छोड़ना। घर का समोशरण आपके नियंत्रण में रहना चाहिए।कृष्ण लेश्या के बाद उपाध्याय प्रवर ने नील लेश्या का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि बबूल के काँटों से बच सकते हो लेकिन इस लेश्या के काँटों से बचना मुश्किल है। नील लेश्या वाले व्यक्ति का कषाय ईर्ष्या, द्वेष वाला रहता है। इनमे धैर्य नहीं रहता है। जहां से आप प्रेरणा ले सकते हैं, वहां से ये बीमारी ले कर आ जाते हैं। गुस्से की आग में कभी कभार सामने वाला भी जल सकता है, लेकिन ईर्ष्या की आग में व्यक्ति खुद जलता रहता है। ये व्यक्ति दूसरों को देखत प्रेरणा नहीं ले सकते हैं। आज कल के मां-बाप बच्चों में ईर्ष्या के भाव जगा रहे हैं। कॉम्पटीशन के चक्कर में अपने बच्चों की तुलना दूसरों के बच्चों से करते हैं। बच्चों को कॉम्पिटेंट (सक्षम) बनाएं। उन्हें दूसरों से प्रेरणा लेने की सीख दें, न कि उनसे अपनी तुलना करने की। ईर्ष्या से नीच गोत्र का बंद होता है। देवलोक जाने के बाद भी उसका गोत्र नीच ही रहता है। संभ्रांत परिवार में जन्म लेने की बाद भी उसका गोत्र नीच ही रहता है। नील लेश्या का एक और चरित्र हैं ‘धैर्यहीन’, व्यक्ति को धैर्य नहीं रहता है। सामने वाले की बात ख़त्म होने के पहले ही वह अपनी बात शुरू कर देता है। इसके अलावा इन्हे हड़बड़ी भी बहुत रहती है,कषाय हड़बड़ी में चलता है। ये महाआलसी भी होते हैं, कोई भी काम हो, ये बाद के लिए टाल देते हैं। नील लेश्य वाला सुख की तलाश करता रहता है। केवल एक दुखी व्यक्ति ही सुख को खोजता है और दुःख में ही जीता है।माता-पिता को सुधारने के लिए 30 सितंबर से शुरू हो रहा है अर्हम पेरैंटिंग शिविर रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने जानकारी देते हुए बताया कि 30 सितंबर और 1 अक्टूबर को अर्हम पेरैंटिंग का शिविर लालगंगा पटवा भवन में आयोजित होने वाला है। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि माता-पिता को सुधारने का कार्यक्रम संचालित करेंगे। प्रवीण ऋषि ने कहा कि बच्चे बिगड़े हुए नहीं हैं, बच्चों को बिगाड़ने वाले माता-पिता हैं। अगर सुधारना है तो माता-पिता को सुधारो।  माता पिता को देव बनाना चाहिए। जन्म देने से कोई देव नहीं बनता है। अगर माता-पिता संतति बनेंगे तो संतान भी संतति बनेगी। उपाध्याय प्रवर ने बताया कि अर्हम गर्भ संस्कार का भी शिविर शुरू हुआ है, जिसमे 400 पार्टिसिपेंट्स हैं। वहीं 1 अक्टूबर से नवकार कलश अनुष्ठान भी शुरू हो रहा है। उन्होंने सकल जैन समाज को इस कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण दिया है।