बड़ौत – दिगम्बर जैनाचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी गुरुदेव ने श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर कैनाल रोड पर आयोजित धर्मसभा में प्रवचन करते हुए कहा कि – “जो दिख रहा है वह सत्य हो, यह जरूरी नहीं है और जो नहीं दिख रहा है वह न हो यह भी आवश्यक नहीं है। सुगंध होती है, पर दिखती नहीं । आत्मा होती है, पर दिखती नहीं। हमारे पूर्वज दिखाई नहीं दे रहे, पर वे थे ।”साधक जितना-जितना परिचय बढ़ाएगा वह उतना उतना साधना से पतित होता चला जायेगा। अंतर्मुखी दृष्टि ही श्रेष्ठ है, जब जब हम बाह्य में प्रवृत्ति करते हैं तब-तब चित्त अशांत होता है। जो समीचीन विचारशील होता वह विकास प्राप्त करता है। विचारों की पवित्रता के अभाव में विनाश-ही-विनाश होता है। विचारों से ही व्यक्ति महान बनता है। विचार ही विकास की राह दिखाते हैं। विचार हमारी संस्कृति के परिचायक होते हैं ।
सर्वथा निमित्तों को दोष नहीं देना चाहिए। निमित्त तो सर्वत्र हैं, पर मानव विचारों के अनुसार निमित्तों से प्रभावित होता है। निमित्तों के पास व्यक्ति स्वयं पहुँचता है। विचारों के अनुसार मनुष्य साधन एकत्रित करता है। विचारों को सँभालो, निमित्त कुछ नहीं कर पायेंगे। गुणी ही गुणवानों की महिमा गाता है। गुण-ग्राही बनो। जैसी दृष्टि होगी, वैसी ही सृष्टि दिखाई देती है। परिणामों की विशुद्धि बढ़ाओ, अशुद्धि के कारण हटाओ। विशुद्धि बड़े वही कार्य करो। विशुद्धि घटे, अपयश मिले, वह कार्य कभी मत करो। दृष्टि पवित्र करो । उपादान शसक्त होता है, निमित्त तटस्थ होता है। पर से प्रभावित मत होना, स्वयं को सँभालो। माया छोड़ो, महात्मा बनो । यश चाहिए तो साधुओं की सेवा करो। धनवान बनना है तो दान करो। स्वस्थ रहना है तो शाकाहार करो। कर्मक्षय करना है, तो तप करो। मुक्ति प्राप्त करना है, तो निर्ग्रन्थ तपस्वी बनो । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे श्री 1008 शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुरेंद्र जैन, मंत्री अनिल जैन, कार्यकारी अध्यक्ष नवीन जैन बबल, कोषाध्यक्ष अनिल जैन राजदूत, दीपक जैन सतीश जैन,विनोद जैन एडवोकेट, सचिन जैन,सुभाष जैन एडवोकेट, श्री 1008 अजीत नाथ मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुभाष जैन ,मंत्री अशोक जैन, अतुल जैन, अंकित जैन ,महेश जैन आदि मुख्य रूप से उपस्थित रहे। 12 सितंबर से 15 सितंबर तक आचार्य श्री का प्रवचन श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मन्दिर पर ही होगा।