बड़ौत – दिगम्बर जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा धर्मसभा में सम्बोधन करते हुए कहा कि-जीवन को खुशहाल करना है, तो नीति का ज्ञान होना चाहिए। नीतिशून्य जीवन दुःखद ही होता है। सफल जीवन जीने के लिए विवेक, ममता, सामन्जस्य, सम्पर्क सोच, परस्पर सहयोग की भावना का होना आवश्यक है। जीवन में हीन भावना नहीं आना चाहिए और अन्य किसी को हीन दिखाने की भी भावना नहीं होना चाहिए। किसी का भी तिरस्कार मत करो, यथायोग्य सभी का आदर-सत्कार करो। नैतिकता, सदाचार के बिना कोरा-ज्ञान व्यर्थ है। सत्य भाषण के साथ, सत्याचरण भी करना चाहिए । सत्य जानना, सत्य पर चलना, सत्य आचरण, सत्य बोलना, सत्य लिखना, सत्य सुनना, सत्य सुनाना और सत्य जीवन जी पाना उन्हीं को सम्भव है जो यथार्थ-सत्य को जानते हैं । सत्याचरण अत्यन्त कठिन है। जो सत्य जानता ही नहीं, वह सत्य का आचरण भी नहीं कर सकता । जो सर्व-सत्य को जानता है, लोक, के सर्व-पदार्थों की सर्व पर्यायों को जानते हैं, वही निर्ग्रन्थ सर्वज्ञ होते हैं। दुःखों का क्षय करना है, तो सत्य जानो, सत्य मानो, सत्य का आचरण करो । व्यक्ति के आचरण से व्यक्ति के कुल का बोध होता है। वर्तमान आचार-विचार से भविष्य का बोध होता है। विचारों के अनुसार आचार होता है। विचारों का पतन होते ही व्यक्क्ति का हास प्रारम्भ होता है और विचारों प्रकृष्टता में विकास प्रारम्भ हो जाता है। अनुमान से भी ज्ञान होता है । पुष्पों के देखने से फलों का बोध हो जाता है। भाषा से भावों का बोध हो जाता है। पुण्य क्षीण होते ही विचारों में विकार उत्पन्न होने लगते हैं। जो विचारों को सँभाल लेता है, उसका भविष्य सँभल जाता है। विचारों के अनुसार ही भविष्य के भव प्राप्त होते हैं। भाव सुधारो, भव सुधर जायेंगे । सभा का संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे मनोज जैन, पुनीत जैन,वरदान जैन, अनुराग मोहन, अंकुर जैन, अमित जैन,राजेश जैन, दिनेश जैन, अशोक जैन आदि थे ।