चड़ीगढ़ – दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज ने रक्षा बंधन पर्व पर रक्षाबंधन पर्व के महत्व को समझाते हुए कहा कि श्री विष्णुकुमार मुनिराज ने श्री अकम्पाचार्य आदि सात सों महामुनिराजों के प्राणों की रक्षा की थी | बलि आदि 4 मंत्रियों ने पद्मराजा से 7 दिन का राज्य स्वयं लेकर अपने राज्यकाल में उन मुनिराजों से वैर होने के कारण उन पर घोर उपसर्ग किया अर्थात् उन मंत्रियों ने जहाँ 700 मुनिराज अपनी साधना, तपस्या में लीन थे, उस समय उनके चारों तरफ लकड़ी आदि ईंधन जलवाकर उसमें आग लगा दी। इस उपसर्ग को देखते हुए मुनिराजों ने संकल्प लिया कि जब तक यह उपसर्ग दूर नहीं होता तब तक के लिए चारों प्रकार के आहार पानी का त्याग करते हुए समाधि को ग्रहण करेंगे । जब विष्णुकुमार मुनिराज को यह समाचार ज्ञात हुआ, तब उन्हें उनकी तपस्या साधना के फल स्वरुप विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हो गई थी उन्होंने उस ऋद्धि से छोटे से कद का ब्रह्मण रूप बनाया और राजा बलि से 3 पग भूमि दान में मांगी । राजा बलि ने भी उस ब्राह्मण को दान दिया और तब उस वटु ब्रह्मण ने एक विशाल रूप धारण किया अपनी विक्रिया ऋद्धि से और पहले पग में पूरा जम्बूदीप माप लिया 2 पग में मानुषोत्तर पर्वत माप लिया अब 3 पग रखने के लिये स्थान नहीं मिला तो वह पग बलि के सिर पर रखा।
ऐसा करते हुए विष्णुकुमार मुनिराजों ने उन 700 मुनिराजों की रक्षा की और लोक में तब से यह रक्षा बंधन पर्व चला आ रहा है उन मुनिराजों का उपसर्ग दूर हुआ और घर घर में चौका लगाया गया और श्रावकों ने खीर का आहार देकर उन मुनिराजों का आहार कराया। जिससे उन्हें स्वास्थ्यता महसूस हुई। इस दिन मुनिराजों की रक्षा के लिए व धर्म की रक्षा के लिए,धर्मात्माओं की रक्षा के प्रतीक के रूप में एक दूसरे ने आपस में रक्षा सूत्र बंधा|यह रक्षा सूत्र बंधना ही रक्षा बंधन त्यौहार के रूप में प्रकट हुआ ।