रायपुर – जो निर्भय होकर जीते हैं, अगले जन्म में भी वे निर्भय होते हैं। भय लेकर मरने वाला भय लेकर जन्म लेता है। भय की चेतना कभी पीछा नहीं छोड़ती है। विशाख नंदी भय लेकर मारा था, अगले जन्म में अश्वग्रीव बना, लेकिन भय ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। कोई अपने भय छुपाने के लिए दूसरों को भयभीत करता है। अश्वग्रीव भयभीत है, उसे मृत्यु का भय है, अपने इस भय को छुपाने के लिए वह लोगों पर अत्याचार करता है, उन्हें भयभीत करता है। लेकिन भय देने वाले को भय ही मिलता है। वहीं त्रिपुष्ठ निर्भय है, पिछले जन्म में भी था। उसे किसी का भय नहीं है। उसने चंडमेघ को पीटा, आदमखोर शेर से निहत्थे भिड़ गया। अश्वग्रीव 3 खंडों पर राज करता है, सभी राज्यों में उसका भय है, त्रिपुष्ठ के पिता प्रजापति भी उससे डरते हैं, लेकिन वह निडर है। सत्य जिसके पास होता है वो कभी भयभीत नहीं होता। उक्त बातें उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने महावीर गाथा के 53वें दिवस, गुरुवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए बोली। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी । महावीर गाथा को आगे ले जाते हुए उपाध्याय प्रवर ने बताया कि भले ही तीनों खण्डों में अश्वग्रीव का भय था, लेकिन विद्याधर के राजा ज्वलनजटी ने अपनी पुत्री स्वयंप्रभा के लिए त्रिपुष्ठ का चुनाव किया। अश्वग्रीव स्वयंप्रभा से विवाह करना चाहता था, उसे जब यह पता चला तो वह तिलमिला गया। पहले चंडमेघ को पीटा, फिर मेरे वनकेसरी को मार डाला, अब मैं जिससे विवाह करना चाहता हूँ, उससे त्रिपुष्ठ का विवाह होने जा रहा है? उसने प्रजापति के पास सन्देश भेजा कि तुम्हारा पुत्र दोषी है, उसे तत्काल मेरे पास भजो। लेकिन त्रिपुष्ठ ने अश्वग्रीव को सन्देश भिजवाया, लिखा : मेरे पिता को परेशान मत करो,यह मैंने किया है, इसकी जिम्मेदारी मेरी है। प्रजापति ने कहा कि क्यों दुश्मनी मोल ले रहे हो, छोटा सा राज्य है हमारा, हमला हुआ तो हमारा क्या होगा? त्रिपुष्ठ ने कहा कि मैंने अपने बल पर कदम उठाया है, मैं उसके गीत गाने के लिए जन्म नहीं लिया है, मैं उसको सबक सिखा कर रहूंगा।
प्रवीण ऋषि ने कहा कि जो अपने पर विश्वास करते है, दुनिया उनपर विश्वास करती है, कभी स्वयं को हारा हुआ मत समझो। त्रिपुष्ठ ने अश्वग्रीव के गुप्त शत्रुओं को अपने साथ रखा था। उन्हे सन्देश पहुंच गया युद्ध का। पुतनपुर से त्रिपुष्ठ और अचल अकेले निकले। अश्वग्रीव को पता चला तो वह हंसा, बोला- ये दो बालक अकेले मेरी सेना का कैसे सामना कर सकेंगे। लेकिन जैसे जैसे दोनों आगे बढ़ते गए, सेना जुड़ती गई, और देखते ही देखते इतनी विशाल सेना बन गई कि अश्वग्रीव की सेना उसके सामने छोटी पड़ गई। सेना को जब पता चला कि त्रिपुष्ठ की सेना हमसे भी विशाल है तो वहां संतुलन गड़बड़ा गया। वे कतई लड़ने को तैयार नहीं थे। कुछ मंत्री त्रिपुष्ठ की शरण में चले गए। लेकिन इस बात से अश्वग्रीव को चिंता नहीं थी, उसके पास चक्र था। अपनी बचीखुची सेना लेकर वह रणभूमि पहुंचा। सामने सेना देखी तो दंग रह गया। उसने सोचा कि मेरे साथ लड़ने वाले आज मेरे खिलाफ खड़े हैं। सेना में भगदड़ मच गई। सभी कहने लगे कि दुश्मनी तो अश्वग्रीव और त्रिपुष्ठ के बीच है, हम क्यों बेवजह मरें। मंत्रियों से एक योजना बनाई, अश्वग्रीव से कहा कि आप त्रिपुष्ठ को द्वन्द युद्ध के लिए ललकारें, वह मन गया। त्रिपुष्ठ के खेमे में समाचार गया, और वह भी मान गया। अश्वग्रीव खुश था, क्योंकि उसके पास चक्र था, लेकिन त्रिपुष्ठ के पास सत्य की शक्ति और साधना का बल था । रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि 12 सितंबर से पर्युषण पर्व शुरू हो रहा है। प्रवीण ऋषि इस बार पर्युषण पर्व को ख़ास बनाने वाले हैं। पर्युषण पर्व से पहले 10 सितंबर को उपाध्याय प्रवर बताएंगे कि हम पर्युषण पर्व क्यों मनाते है। वहीं 11 सितंबर को बताएंगे कि पर्युषण पर्व कैसे मनाते है। उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व पहले है, जैन धर्म बाद में।