बड़ौत – शिरोमणि, जैन आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार मे धर्मसभा को सम्बोधन करते हुए कहा कि – सज्जन पुरुष किसी भी घटना पर उतावले नहीं होते, वह धैर्यपूर्वक, सोच-समझकर निर्णय लेते हैं। किसी भी व्यक्ति या धरना से तुरन्त प्रभावित नहीं होना चाहिए। जीवन में विवेक, उत्साह और धैर्य बहुत आवश्यक है। उत्कर्ष के लिए उमंग होना चाहिए। हम ‘जैसा सम्मान स्वयं चाहते हैं वैसा ही हमें सभी का यथा-योग्य सम्मान करना चाहिए। जितना कष्ट व्यक्ति को अस्त्र-शस्त्र के प्रहार से नहीं होता, उससे भी अधिक पीड़ा अपमान की होती है । सज्जन जहाँ जाते हैं वहाँ की रीति-नीति पहले समझते हैं, जो रीति-नीति सीखकर जीवन जीते हैं, वह सबके प्रिय हो जाते हैं। जो रीति- नीति शून्य होकर जीवन जीता है, वह सर्वत्र अपमान एवं तिरस्कार को प्राप्त होता है। सम्मान चाहिए, तो सम्मान देना भी सीखो। विनम्रता, विवेक, मधुर सम्भाषण सज्जनों की कुल-विद्या है। सज्जन विपत्ति आने पर भी नम्रता नहीं छोड़ते।
जिन भावों से बंध होता है, उन्हीं भावों से निर्बन्धना प्राप्त कर सकते हो। पवित्र भावों से शुभ एवं अशुभ भावों से अशुभ कर्म-बंध होता है। जिन पैरों से आप दुनिया में घूमते हो, उन्हीं पैरों से आप मंदिर जा सकते हो। जिन आँखों से नारियों को निहारते हो, उन आँखों से आप निर्ग्रन्थ मुनियों को भी निहार सकते हो। जिन हाथों से आप भोजन करते हो, उन हाथों से किसी की सेवा भी कर सकते हो, दान भी दे सकते हो। जिनके कानों से व्यर्थ की बातें सुनते हो, उन कर्णो से गुरुवाणी भी सुन सकते हो । परस्पर में झगड़ा, कलह करने वाले महा-हिंसक होते हैं। ईर्ष्या मत करो, अपने गुणों की वृद्धि करो। किसी के चाहने से किसी का अशुभ नहीं होता है, परन्तु अशुभ सोचने से अशुभ कर्म का आसव अवश्य होता है । संतान को संभलना तो जानवर भी जानते हैं, परन्तु अपने परिणामों को संभालने का पुरुषार्थ करो। जो परिणामों को संभाल लेता है, वह भविष्य में श्रेष्ठ को कुल प्राप्त करता है । सभा मे मुनि श्री निर्ग्रंथ सागर जी मुनिराज ने भी मंगल प्रवचन किये। संचालन पंडित श्रेयांस जैन ने किया । सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन,विनोद जैन एडवोकेट,राकेश सभासद, वरदान जैन, शुभम जैन, धनेंद्र जैन, मनोज जैन, अनुराग मोहन, अशोक जैन, वीरेंदर जैन, दिनेश जैन आदि उपस्थित थे