बड़ौत – दिगम्बराचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज ने ऋषभ सभागार बड़ौत मे धर्म सभा में प्रवचन करते हुए कहा, कि- ” संयममार्ग में आत्मानुशासन अत्यंत आवश्यक है।” आत्म जागृति पूर्वक संयम के प्रति झुकाव जब तक नहीं होगा, तब तक वाक्पटुता शास्त्र ज्ञान कार्यकारी नहीं है। शास्त्र- स्वाध्याय से वैराग्य- वर्धन होता है, कषायें मंद होती हैं, तत्त्वज्ञान होता है तथा आत्मानुभव कला प्रकट होती है। दुनिया में सबसे सुन्दर यदि कोई है, तो वह हमारी आत्मा है। न वह पानी में गलता है, न वह अग्नि में जलता है, वह अनंत गुणों का भण्डार, शाश्वत सुख-स्वरूप चैतन्य भगवानात्मा है। आत्मा न मरता, न जन्म लेता, वह तो अजर-अमर है। रहा है और हमेशा जिएगा वही जीवात्मा है।
धन्य-धन्य हैं वह जीव जिन्होंने संसार के भोगों को छोड़कर वैराग्य-पथ पर चलना स्वीकार किया है। पंचमकाल में यदि कोई चमत्कार है, तो वह दिगम्बर जैन मुनि हैं। जो अखण्ड-ब्रह्मचर्य व्रत धारण करते हैं, वस्त्र धारण नहीं करते, वाहन के त्यागी पग-बिहारी होते हैं, वर्तनों का प्रयोग नहीं करते, करपात्री होते हैं, गर्मी हो या ठण्डी, परिषह सहन करते हैं । बड़ों के द्वारा की गई प्रशंसा छोटों को आगे बढ़ाती है। प्रशंसा, पुरुषकार सत्कार उमंग से भर देते हैं । संसार में वही मानव सर्व-श्रेष्ठ है, जो गुणवंतों के गुणों की स्तुति करता है। जो गुणियों की निन्दा करता है, स्व की प्रशंसा करता है, उसे नीच गोत्र का बंध होता है । योगियों को मुक्ति का मूल ध्यान- साधना है। ध्यानी शीघ्र ही कर्मों का दहन कर देता है। परिग्रह त्यागी, भोगों से बैरागी, इन्द्रियों के भोगों से विरक्त, शुद्धयोगी, अहिंसक, करुणाशील, जाग्रत मानव ही ध्यान कर सकता है । सभा मे मुनि श्री यशोधर सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये।सभा का संचालन डॉक्टर श्रेयांस जैन ने किया।सभा मे प्रवीण जैन, अतुल जैन, मनोज जैन, राकेश सभासद,दिनेश जैन, विनोद जैन एडवोकेट,सुरेश जैन,वरदान जैनअशोक जैन, सुनील जैन,राजेश भारती,पुनीत जैन, विवेक जैन,अनुराग मोहन आदि उपस्थित थे