टैगोर नगर के श्री लालगंगा पटवा भवन में चातुर्मासिक प्रवचन
रायपुर – कभी-कभी लोग सिंगल पर फोकस हो जाते हैं। वो व्यक्ति उसी में रमन करता है। जो जिसमें रमन करता है, वही हो जाता है। यही साधना का सूत्र है। ज्ञानियों के लिए ऐसा करना मुश्किल है। जिनमें वात्सल्य का बल है, उनके लिए यह बहुत सहज है। टैगोर नगर के श्री लालगंगा पटवा भवन में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन में गुरुवार को उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने ये बातें कही । उन्होंने कहा कि एक मां अपने बेटे के सिवाय किसी और को देखती तक नहीं है। मरुदेवी ने अपने पुत्र को निरंतर देखा। और किसी को देखा ही नहीं। किसी और में जिज्ञासा ली ही नहीं। न किसी से मिलने की तमन्ना थी। न किसी को जानने की। उतनी गहराई से जब हम किसी के साथ जुड़ते हैं तो उसकी शिखरता भी हमें सहज उपलब्ध हो जाती है। ये अनन्य भक्ति का सूत्र है। इस सूत्र को मरुदेवी ने पूरे जीवन किस तरह जीया है, ये सिखाने के लिए हम आपको कितनी ही ट्रेनिंग देते हैं, लेकिन कहीं न कहीं आपका मन किसी एक की तरफ भटकता है। आपके लिए कितनी भी बढ़िया थाली आ जाए, आपका ध्यान उस एक चीज की ओर जाएगा जो थाली में नहीं है। अन्य पर नजर जाती है। घर में कितने ही मेहमान आए हैं, मन उस एक को खोजता है जो नहीं है। जब अन्य पर नजर जाती है तो संसार शुरू होता है। नजर जब अनन्य हो जाती है तो मोक्ष के के मार्ग खुल जाते हैं।
भक्ति मार्ग का एक ही रास्ता..प्रभु! तुम ही, दूसरा कोई नहीं
मीरा के जीवन का एक प्रसंग है। तुलसीदास, आचार्य मानतुंग, इंद्रभूति गौतम और चंदनबाला के जीवन का भी वही प्रसंग है, हे प्रभु! तुम ही, दूसरा कोई नहीं। मैं तुमसे उपलब्ध मृत्यु को जीतूंगा। और किसी की तमन्ना ही नहीं। इंद्रभूति गौतम के सामने तो कैवल्य ज्ञान का प्रपोजल था। भगवान महावीर ने कहा था, तू मुझे छोड़ दे। तुझे कैवल्य ज्ञान हो जाएगा। इंद्रभूति गौतम ने ये ऑप्शन भी नहीं चुना। उसने कहा, मुझे आप चाहिए। इसी भाव में बहती हुई मरुदेवी जब बेटे को निहारती तो बेटा प्रभु बन चुका है। बेटा सर्वज्ञ हो चुका है। सर्वदर्शी हो चुका है। गंदे नाले का पानी गंगा में मिलने के बाद गंगा का पानी ही कहलाएगा। गंगा मां पर लोगों की अगाध आस्था है। ऐसे ही प्रभु की गंगा में मरुदेवी इतनी तल्लीन हो गईं कि वो भी उन जैसी हो गईं। क्या नमक का पुतला सागर को तलाशने जाएगा तो वापस आएगा? उसके भीतर घूमने की कला है। घुल जाने की कला है। एक हो जाने की कला है। ऐसे ही लोग आचार्य मानतुंग बनते हैं।
7, 8 और 9 अगस्त को पटवा भवन में अर्हम योग शिविर
जीवन में सपने कैसे सच हो जाते हैं? उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि महाराज साहब महावीर कथा के माध्यम से इसकी बारीकियां समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि हमारे सपने जितने बड़े होते हैं, हम भी उतने बड़े बन जाते हैं। गुरुदेव आने वाले दिनों में भी विभिन्न कैंप्स के जरिए अच्छा जीवन जीने की ट्रेनिंग देंगे। इसी कड़ी में 7, 8 और 9 अगस्त को टैगोर नगर के श्री लालगंगा पटवा भवन में अर्हम योग शिविर का आयोजन किया गया है।