सुभाष गंज में चल रही है धर्म सभा पाठशाला वच्चो को संस्कार देने वाली दूसरी मां हैं – विजय धुर्रा
अशोक नगर – श्रेष्ठ पुण्य के साथ हम यहां से गमन करके बड़ी भक्ति से उच्च स्थान प्राप्त कर विदेह क्षेत्र की ओर अपनी यात्रा को ले जायें ये ध्यान हमारी आत्मा को पवित्र और पावन वनाने में सहयोगी वनाकर ये सम्यक ध्यान प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर ले जायेंगे हम प्रवृत्ति की ओर से निवृत्ति की साधना में अपना ध्यान लगा दें इसके लिए ना हमें हवेली चाहिए ना मोटर कार्वन दौलत चाहिए हमें तो केवल एकांत चाहिए ध्यान के लिए निरवयास क्षेत्र सबसे अच्छा कहा गया है जहां किसी का आना जाना ना हो जहां हम तत्वों का, पदार्थों का आत्मा के चिंतन में अपना उपयोग लगें तो अपने लक्ष्य की ओर वड़ते चले जायेंगे उक्त आश्य के उद्गार आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज ने सुभाषगंज मैदान में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
पाठशाला की वहनो को सम्मानित किया
इसके पहले गत दिवस शाम को आचार्य भक्ति के वाद आचार्य श्रीआर्जवसागर जी महाराज ससंघ के सान्निध्य में श्री सर्वोदय विद्यासागर पाठशाला की बहनों को मध्यप्रदेश महासभा संयोजक विजय धुर्रा ने सम्मानित करते हुए कहा कि हमारी वहने छोटे छोटे वच्चो से लेकर लड़ो तक को पाठशाला के माध्यम से संस्कार दे रही है पाठशाला संस्कार देने वाली वच्चो की दूसरी मां है हमें इनके काम की सराहना करते हुए इनको प्रोत्साहित करना चाहिए इस दौरान आचार्य श्री ने कहा कि यहां की वेटियो के साथ ही महिलाएं भी पठन पाठन में आगे है पाठशाला बहुत अच्छी तरह से चल रही है इनको समय समय पर प्रोत्साहन तो मिलते रहना चाहिए उन्होंने कहा कि पाठशाला संस्कारो की जन्नी है जिन घरों से अभी पाठ शाला में वच्चे नहीं आते वे भी अपने वच्चो को पाठशाला भेजें तो आपके वच्चे यहां कुछ सीख सकेंगे । इस दौरान प्रश्न उत्तरीकार्यक्रम में सही उत्तर देने वाले को भी पुरुस्कार दिए गए ।
मानव जीवन में संयम लेने की योग्यता होती है
उन्होंने कहा कि मानव के जीवन में जन्म लेने के वाद संयम लेने की योग्यता आठ वर्ष अंतर मूहूर्त के बाद आती है आठ वर्ष अंतर मूहूर्त से कम में संयम ग्रहण नहीं किया जा सकता आचार्य श्री कुन्द कुन्द स्वामी ने छोटी उम्र ही दीक्षा ग्रहण कर ली थी एक ही बस्तू से हम सुख दुःख हो सकतें हैं वह वस्तु जव हमारे अनुकूल होती है तो हमें सुख की अनुभूति होती है और जव वहीं वस्तु हमारे प्रतिकूल होती है उससे हम दुखी होने लगते है वस्तु सुख दुःख नहीं देती उससे जो हमें आनंद आता है उसमे सुख दुःख समाहित है जो कुछ भी होता है वह कर्मो के उदय से होता है हमें कर्म के उदय का चिंतन करते हुए अपने परिणामो को निर्मल वनाये रखना चाहिए ।