रायपुर – एमजी रोड स्थित जैन दादाबाड़ी प्रांगण में चल रहे मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन श्रृंखला में गुरुवार को नवकार जपेश्वरी साध्वी शुभंकरा श्रीजी ने कहा कि जीवन को रिफाइन करने के लिए हम वर्षों से जिनवाणी का श्रवण करते आ रहे हैं। बचपन से माता पिता के साथ हम जिनवाणी सुनने आते थे, सुनकर बहुत अच्छा लगता है लेकिन करना क्या है यह हमें समझ नहीं आता और ऐसे आज बरसों निकल चुके हैं । साध्वीजी कहती है कि परमात्मा की वाणी भी औघड़ दानी जैसी बरस रही है। औघड़ दानी यानी निरंतर बरसते रहने वाला। हम इस वर्षा में भी नहीं भीग रहे हैं। मतलब हमारा पात्र सीधा नहीं उल्टा रखा हुआ है। इस पात्र में अगर एक बूंद भी जिनवाणी कि नहीं टपक रही तो पात्र सीधा नहीं है यह मान लीजिए। मनुष्य जीवन में ही मौका है इस पात्र को सीधा करने का। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप कब समझेंगे कि आपकी अंतरात्मा का पात्र उल्टा रखा हुआ है।
मंदिर में होती ऊर्जा, इसे रोज ग्रहण करें
साध्वीजी कहती है कि आज हम प्रतिदिन परमात्मा के दर्शन करने मंदिर जाते हैं। यह हमारे आंख मात्र का ही दर्शन होता है, इसे हमने नियमित बना लिया है। घर से निकलते ही मंदिर जाना और दर्शन करके अपने काम पर निकल जाना। आपको यह यकीनन पता होगा कि मंदिर उर्जा से भरपूर होते हैं, वहां बहुत ऊर्जा मिलती है। आपको पता भी होगा परमात्मा हमारे अंदर भी बसते हैं, पर हम इस बात का एहसास नहीं कर पाते हैं। जिनवाणी को रखने के लिए हमें पात्र को सीधा करना होगा, तभी हम सिद्ध हो पाएंगे । उन्होंने आगे कहा कि आज हम जीवन जीने की कला सीखते हैं। तरह तरह के मोटिवेशनल और पर्सनालिटी डेवलपमेंट के क्लासेस करते हैं वह भी पैसे देकर। टीवी, मोबाइल और इंटरनेट पर वीडियो देखकर हम यह सीखने का प्रयास करते हैं। फिर भी हम वैसा जी नहीं पाते जैसा हम चाहते हैं और जैसा हमें जीना चाहिए। क्या आपको पता है हमारे बुजुर्ग टीवी-मोबाइल नहीं देखते थे और उनके समय तो टीवी-मोबाइल होता भी नहीं था। फिर भी उन्होंने अपना जीवन संयमित रूप से जी लिया है। जन्म मरण तो हर जीवन में होता है पर इस जीवन में हमें जीना है। जागृत होना है, नींद में भी हमें जागृत रहना है और जो नींद में भी जागृत रहे वह संयमित जी रहे है।
बच्चों को अभाव में रहना सिखाएं, नहीं तो वे जिद्दी हो जाएंगे
साध्वीजी ने कहा कि आज तो संस्कार देना भी एक फैशन की तरह हो गया है। हममें संस्कार होता कम है और हम दिखाते ज्यादा है। यह भी दिखावे की श्रेणी में आ चुका है। हमें बचपन को अच्छे संस्कार मिल जाते हैं पर उन संस्कारों का अच्छा बने रहना आज दुर्लभ हो रहा है। बचपन में मिले संस्कारों को वर्षों तक बनाए रखना ही संयम है। उन्होंने आगे कहा कि आज संस्कार के साथ-साथ आप बच्चों को जो चाहिए वह खरीद कर दे देते हो और धीरे-धीरे वहां उनकी आदत बन जाती है। बचपन में तो छोटे-मोटे खिलौनों से वह मान जाते हैं पर जैसे-जैसे वह बड़े होते हैं उनकी मांगे बढ़ती जाती है और यदि आप उनकी मांगे पूरी नहीं करेंगे तो वह जिद्दी हो जाएंगे और आपसे अपनी जीत बनवाएं बिना पीछे नहीं हटेंगे। आपको अपने बच्चों के जीवन में एक अभाव पैदा करना होगा ताकि वह भी संयमित हो सके । मनोहरमय चातुर्मास समिति के अध्यक्ष श्री सुशील कोचर और महासचिव श्री नवीन भंसाली ने बताया कि मनोहरमय चातुर्मासिक प्रवचन 2023 ललित विस्त्रा ग्रंथ पर आधारित है। नवकार जपेश्वरी परम पूज्य शुभंकरा श्रीजी आदि ठाणा 4 के मुखारविंद से सकल श्री संघ को जिनवाणी श्रवण का लाभ दादाबाड़ी में मिल रहा है। साथ ही उन्होंने नगरवासियों से साध्वीजी के मुखारविंद से जिनवाणी का श्रवण करने का आग्रह किया है।