सागर – व्यक्ति छुट्टी का दिन यानी रविवार को सो गया, खो गया मौज-मस्ती का दिन बना लिया, लेकिन उसे मौज मस्ती का दिन नहीं अच्छा बनाने की कोशिश करो। जीवन की सार्थकता धन कमाने से नहीं धर्म कमाने से जीवन की सार्थकता है यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने मूकमाटी महाकाव्य के स्वाध्याय की कक्षा में कहीं । मुनि श्री ने कहा आज व्यक्ति के पास धन है दौलत है, बंगला है, कार है, लेकिन ना तो शांति है और ना ही भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य है आज स्थिति यह है कि लोग भगवान से कोसों दूर हैं लेकिन जिस दिन मंदिर जाने का आपका मन हो उसे पुण्योदय मानना और मन से दर्शन पाकर के त्रप्त तो हो जाना पुण्यशाली व्यक्ति अपना भव सुधारता है दुनिया की संपत्ति वैभव इकट्ठा करता है लेकिन जिनेंद्र भगवान के वैभव के सामने रत्ती भर भी नहीं है । मुनि श्री निर्लोभसागर महाराज ने कहा दर्शन के प्रति समर्पित होना यही भक्ति है यदि मंदिर दूर है और रुचि कम है तो यह अंतरंग में रुचि नहीं मानी जाती है एक बार एक व्यक्ति ने कहा महाराज जी हम मंदिर नहीं जाते हैं हमने उसको खूब समझाया लेकिन उसने असमर्थता व्यक्त की तो मैंने उसे एक नियम दिया कि घर के सामने जो व्यक्ति रहता है सुबह उसके दर्शन कर लिया करो उसके बाद भोजन करना, घर के सामने कुंभकार रहता था प्रतिदिन नहा धोकर वह घर के बाहर खड़ा हो जाता कुंभकार के दर्शन कर लेता और दर्शन की आदत उसे डल गई। दर्शन नियम श्रद्धा से करें। प्रतिज्ञा ना टूटे, त्याग के प्रति आस्था होना चाहिए। एक बार कुंभकार जल्दी घर से चला गया बेचारे सेठ जी परेशान उसके घर पहुंचे और पत्नी के पूछा कुंभकार कहां गए उन्होंने कहा माटी खोदने गए हैं सेठ जी ने दौड़ लगाई और उस स्थान पर पहुंचे कुंभकार को देखा और वापस दौड़ लगा दी पीछे पीछे कुंभकार ने दौड़ लगाई। कुंभकार ने सोचा मिट्टी खोदते समय जो सोने का घड़ा हमें मिला है वह सेठ जी ने देख लिया है लेकिन बात ऐसी नहीं थी सेठ जी ने कुंभकार के दर्शन का नियम लिया था और वह दर्शन करके लौट रहा था कुंभकार सेठ के पास पहुंचा और कहा था कि आप आधा ले ले, आधा हम तो सेठ ने कहा सोना तुम्हारे भाग्य से मिला है और मुनि महाराज के सामने पहुंचकर कहा कि महाराज जी धर्म किया नहीं, कुंभकार को देखने पर आधा घड़ा मिल रहा था तो गुरुओं और भगवान के दर्शन करने से क्या नहीं मिल सकता है आज से भगवान के दर्शन करने का नियम लेता हूं बिना दर्शन के कुछ नहीं करूंगा।