डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि आप लोगो ने ये दृश्य देखा होगा कि जब दही को मथनी से मंथन करते हैं | यदि इसका अभ्यास जिसको होता है तो वह बीच – बीच में उसको देखते रहते हैं कि कुछ – कुछ रवादार कण ऊपर देखने को मिलता है | जब बहुत सारे कण (मक्खन) ऊपर दिखने लग जाता है तो वह समझ जाता है कि अब इसको ज्यादा मथना ठीक नहीं है | अनुपात से ही सब कुछ होना चाहिये | इसको कच्छा रखना भी ठीक नहीं और ज्यादा पकाना (मथना) भी ठीक नहीं है | उसको बाहर निकलना चाहता है तो एक प्रकार से हाथ में चिपकने लगा फिर उसने गर्म पानी से हाथ धोया फिर इसके उपरांत वह नवनीत को बाहर निकाला तो नवनीत हाथ में आ गया और दो तीन बार हाथ में लेकर हिलाने पर वह गोल – गोल हो गया | अब जो भीतर था वह बाहर आ गया और बचा हुआ मठा रहता है | मठा के ऊपर नवनीत तैरने लगा उसका ¼ हिस्सा ऊपर दूज या चतुर्थी के चंद्रमा के समान दिखने लगा और शेष हिस्सा मठा में डूबा रहता है | ऊपर वाले को अच्छा और निचे वाले को बुरा माना जाये तो ठीक नहीं होगा दोनों समान ही है किन्तु तैरने कि अपेक्षा से ऊपर वाला हल्का है और निचे जो डूबा हुआ है उसमे कुछ सम्मिश्रण अभी शेष है जिसके कारण वह डूबा हुआ है | यह अभी न तो दही है और न ही घी है यह बिचला है | यह तो हुआ अरहंत परमेष्ठी का स्वरुप | अरहंत कौन है जो तैर तो रहा हैं लेकिन लोक के शिखर तक जाकर के बैठ नहीं रहे अभी किन्तु बीच में ही तैरते हैं, बैठते है ठीक है, चलते हैं तो जमीन से चार अंगुल ऊपर रहते हैं | उनके पीछे – पीछे हम सब भी चल सकते हैं | यह दशा है उनकी इसलिए वो भी संसारी कहलाते हैं | दूध से दही और दही से नवनीत बन गया है लेकिन अभी उसका पूर्ण स्वभाव उद्घाटित नहीं हुआ है | घी कि गंध और नवनीत कि गंध में अभी अंतर है | वर्ण को देखते हैं तो भी अंतर है | घी तो देखते हैं तो ऊपर से भी देख लो तो वह ऊपर भी दिखाता है और अन्दर का भी दिखाता है जबकि नवनीत में देखते हैं तो केवल ऊपर का ही दीखाता है और अन्दर का नहीं दिखाता है उसमे अभी दो – तीन बाते है ही नहीं | घी के अन्तंग को देखते हुए यदि आप थोडा सा निचे झुकेंगे तो आप भी उसमे दिख जायेंगे किन्तु नवनीत में नहीं दिख सकते हो | इतनी सब बातों का मंथन करने से पता चलता है कि जैसे नवनीत और घी में अंतर है उसी प्रकार अरहंत परमेष्ठी और सिद्ध परमेष्ठी में अंतर है अन्तरंग से भी और बहिरंग से भी | कहाँ वह नवनीत कि दशा और कहाँ वह घी कि दशा आपके भीतर छिपी हुई है यह आपको देखना है | अरहंत परमेष्ठी जहाँ चार अंगुल ऊपर उठे हैं तो सिद्ध परमेष्ठी पूरे – पूरे लोक के अग्र भाग में विराजमान है | जैसे दूध में यदि आप घी को डाल दो तो वह पूरा का पूरा ऊपर दिखने लगता है उसका एक कण भी निचे नहीं रहता है यह सिद्ध अवस्था है | आप जितने निचे बैठे हैं क्योंकि इनमे कमी का भंडार है | आपको पूछता हूँ घी तो वहाँ तक पहुँच गया आप बैठे – बैठे हाथ पर हाथ रखकर अपने आप को थोडा सा ऊपर उठाओ | आप अपने आप को एक इन्च भी ऊपर नहीं उठा पाते हो कितने भारी हो आप इतने मोटे – ताजे हो कि चार व्यक्ति के द्वारा भी उठने वाले नहीं हो | सिद्ध परमेष्ठी के साथ कुछ लोग अपने स्वभाव कि तूलना करते हैं | उसको देखकर ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार से उनके समान स्वयं को मानते है | शक्ति कि अपेक्षा से मान ले तो कोई पाबंध नहीं किन्तु गुणों कि अपेक्षा से मानते हैं तो यह सिद्ध परमेष्ठी का वर्णवाद माना जायेगा | दूध तो दूध है, दही तो दही है, नवनीत तो नवनीत है, घी तो घी है किन्तु आप दूध को सुरक्षित रखते हो तो घी तक आपकी यात्रा हो सकती है | पूरी शक्ति विद्यमान है आपके पास दूध कि मर्यादा जब तक है तब तक आप उसका उपयोग कर लो मर्यादा के बाद आप उसको जमा नहीं सकते वह फट जाता है | इसलिए आप अभी सम्यग्दर्शन के लिये योग्य है और एक इन्द्रिय भी कम हो जाये तो सम्यग्दर्शन के लिये फटे हुए दूध कि तरह अयोग्य हो जायेंगे | इसलिए योग्यता के साथ आपके पास यह अवसर मिला है इसका सदुपयोग कर मनुष्य जन्म को मुक्ति मार्ग में लगाकर अपना जीवन सार्थक करे | दौलतराम जी छह ढाला में लिखते हैं कि अच्छे कर्म से नर तन पाया है इसका उपयोग सिद्धत्व कि प्राप्ति के लिये करना चाहिये क्योंकि अन्य पर्याय में यह कार्य संभव नहीं है | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी रूबी दीदी, प्रिया दीदी (प्रतिभास्थली, हथकरघा) परिवार को प्राप्त हुआ | जिसके लिये चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन,निर्मल जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है |यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है |यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |
(विशेष नोट – श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से चातुर्मास कमेटी एवं ट्रस्ट के तत्वाधान में निःशुल्क आयुर्वेद स्वर्ण प्राशन संस्कार शिविर पुष्य नक्षत्र में दिनांक 18 जुलाई २०२३ दिन मंगलवार प्रातः 8 बजे से शाम 4 बजे तक 1 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक, बालिकाओं को पिलाया जायेगा जिससे उनकी बुद्धि, याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता एवं शारीरिक शक्ति बढ़ने वाला आयुर्वेदिक वैक्शीनेशन व ब्रेन पॉवर टॉनिक है )