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त्याग तपस्या का जीता जागता उदाहरण है आचार्य श्री ज्ञेयसागर महाराज ज्ञान तीर्थ में 48 घंटे में एक बार ही ले रहे हैं अन्नजल

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मुरैना – दिगंबर संत त्याग तपस्या की जीती जागती प्रतिमूर्ति हैं दिगंबर संत एक बार ही अन्य जल ग्रहण करते हैं। कहीं हमारे दिगंबर संत तो एक आहार एक उपवास जैसी उत्कृष्ट साधना करते हैं जो पंचम काल में उत्कृष्ट तपस्या है।हम ऐसे पावन दिगंबर संत के विषय में आप सभी को जानकारी समझा कर रहे हैं ऐसे संत हैं सराको उद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी  महाराज के शिष्य आचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज जिनका पावन वर्षा योग ज्ञानतीर्थ मुरैना में संपन्न हो रहा है जिसमें विभिन्न आयोजन हो रहे हैं इनकी त्याग तपस्या के विषय में जितना कहा जाए कम होगा श्री मनोज जी नायक उनके विषय में बताते हैं कि  मुरैना की पावन धरा के नगर गौरव अ ज्ञानतीर्थ प्रणेता, छाणी परंपरा के षष्ठ पट्टाचार्य सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज (ससंघ) का पावन वर्षायोग कलश स्थापना 02 जुलाई को ए बी रोड धौलपुर आगरा हाइवे पर स्थित श्री दिगम्बर जैन ज्ञानतीर्थ क्षेत्र मुरैना में हो चुकी है । पूज्य गुरुदेव ज्ञेयसागर महाराज के संघस्थ मुनिश्री ज्ञातसागर महाराज, मुनिश्री नियोगसागर महाराज, क्षुल्लक श्री सहजसागर महाराज, ब्र.महावीर जैन, ब्रह्मचारिणी बहिन अनीता दीदी, मंजुला दीदी, ललिता दीदी भी ज्ञानतीर्थ पर चातुर्मास कर रहीं हैं । ज्ञेयसागर जी महाराज क्षेत्र की अलौकिक छटा एवं शांति प्रिय, प्राकृतिक वातावरण से युक्त अलौकिक वातावरण में अपनी आत्म साधना में लीन है। और उत्कृष्ट कठोर तप कर रहे हैं। पूज्य आचार्य श्री की जो तपस्या है वह इनकी निर्मोहीता व निष्प्रहता को दर्शाता है। ऐसी साधना पंचम काल में दिगंबर संत ही करता है। पूज्य आचार्य श्री ज्ञेयसागरजी महाराज एक दिन आहार लेते हैं और दूसरे दिन चारों प्रकार के आहार का त्याग करके उपवास में रहते हैं। हम लोग तो 1 दिन भी भूखे प्यासे नहीं रह पाते हैं लेकिन आचार्य श्री केवल 48 घंटे में एकबार ही अन्न जल ग्रहण करते है भौतिकता की चकाचौंध से परे होकर पूज्य आचार्य श्री आध्यात्मिक चिंतन के साथ पूज्य गुरुदेव आत्म कल्याण हेतु साधना में लीन हैं पूज्य आचार्य श्री ने आठ उपवास की उत्कृष्ट साधना भी की 

  आचार्य श्री के विषय में वर्णन करना उनके तप के विषय में श्री नायक ने बताया कि आचार्य श्री ने फागुन अष्टाहिका पर्व में निरंतर आठ दिन का  निर्जल उपवास किए। और 8 दिन की पूर्णता के बाद एक बार ही अन्न जल ग्रहण किया था । ऐसे कलिकाल में निर्दोष चर्या का पालन करते हुए आध्यात्मिक संत कठोर तप के द्वारा अपने आत्मकल्याण की और अग्रसर हैं । ऐसे पावन संत के दर्शन करने का मन भला किसका नहीं होगा प्रतिदिन ऐसे संत के चरणों में शीश झुकाने, चरण रज पाने, आशीर्वाद लेने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों लोग आते हैं और उनके दर्शन कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं ।