सागर – भोजन करने के लिए थाली पर बैठते ही आपके भाव इस प्रकार होना चाहिए हे भगवान संसार में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रहे उसे भोजन मिले जो व्यक्ति ऐसी भावना करता है वह कभी भूखा नहीं रहता आप हमेशा भूखे को भोजन कराएंगे इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है यह बात मुनि श्री अजितसागर महाराज ने श्री विद्यासागर महाराज द्वारा लिखित मूकमाटी महाकाव्य के स्वाध्याय में कहीं । उन्होंने कहा यदि कोई व्यक्ति वृति बनता है तो यश कीर्ति नाम का बंध होता है उसे सम्मान मिलता है आप अपने मन से अपने घर भोजन के लिए ले जाएंगे। व्रत संयम का हमेशा सम्मान मिलता है और यदि सम्मान मिलता है तो यह मत सोचना कि आपको सम्मान मिल रहा है बल्कि यह संयम का सम्मान है
मुनि श्री ने कहा जब कभी भगवान के सामने बैठो तो उनको सब बता दो कि मैं पापी हूं तो निश्चित रूप से तुम्हारा कल्याण हो जाएगा गुरु की आज्ञा मानना ही धर्म ध्यान है व्यक्ति को अपने कर्मों का चिंतन जरूर करना चाहिए आज संसार में सारे जीव अपने कर्मों के अनुसार भोग रहे हैं । मुनि श्री ने कहा जब कोई व्यक्ति आपको मिलता है तो वह खुश है या परेशान यह उसके चेहरे से पता चलता है आज परेशान कोई दूसरा नहीं अपना ही करता है अपने वालों से लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं क्योंकि हमने ही संबंध जोड़ा है वह बुरा कहेगा, अच्छा भी कहेगा, तारीफ भी करेगा, गीत भी गाएगा, गाली भी देगा यही संसार की विचित्रता है । मुनि श्री ने कहा जब आप स्वाध्याय करते हैं तो मन की विसंगति दूर होना चाहिए संधिकाल के समय यात्रा नहीं करना चाहिए यह बात आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने अपने प्रवचनों में कही थी इस दौरान अपने घर से मत निकलिए या कोई ट्रेन का समय है तो आधा घंटे पहले जाकर के स्टेशन पर इंतजार कर ले हमेशा शांत बैठने का प्रयास करना चाहिए और इस काल में भोजन नहीं करना चाहिए बल्कि भजन करना चाहिए संधि काल जाने का नहीं ध्यान करने का होता है।