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पूजा, पाठ, स्वाध्याय कर समय का सदुपयोग करें – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि कई लोगो को इस विषय में जानकारी नहीं होती है और जिनको होती है तो वे उसकी गहराई को नहीं जान पाते ऐसा हमे लगता है | स्वाध्याय पांच प्रकार का होता है पहला वाचना जिसमे शास्त्र, ग्रन्थ आदि कि वाचना होती है | वाचना के दौरान यदि इसमें कुछ समझ नहीं आता है तो उसे जानने (पूछने) कि जिज्ञासा होती है यह पूछना ही पृछना है | जिज्ञासा का समाधान होने के पश्चात फिर इसका चिंतन, मनन आदि करना अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है | कुछ लोगो को तो स्वप्न में भी स्वाध्याय चलते रहता है | बार – बार इसका शुद्ध पाठ करना आमनाय कहलाता है | अंत में आता है धर्मोपदेश जिसके माध्यम से हमें धर्म के बारे में उपदेश प्राप्त होता है | पहले के लोग समूह में बारी – बारी दो – दो पंक्ति का पाठ किया करते थे जो आज देखने में नहीं आता है | कुछ बुढे लोग इसको आज भी करते हैं | आचार्यों ने कहा कि गुरु वंदना, जिन वंदना, पाठ आदि स्वाध्याय के रूप में आता है | आज अष्टानहिका पर्व प्रारंभ हो चुका है और यहाँ 8 दिन का नंदीश्वर विधान भी किया जा रहा है| आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने नंदीश्वर द्वीप के बारे में बताया है कि अष्टानहिका पर्व में सभी देव मिलकर दिव्य – दिव्य वस्तुओं के माध्यम से अकृत्रिम जिनालय में पूजन, पाठ, प्रक्षाल आदि बहुत भक्ति भाव से करते हैं | आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने इसकी रचना संस्कृत में कि है जिसका हिंदी अनुवाद मुक्तागिरी में किया गया था जो आज आपके सामने रखा गया  है | आप लोगो को बहुत गर्मी सहन करने के पश्चात अब शीतल हवा में हलकी बारिश के साथ इसका आनंद लेने का अवसर मिल रहा है | इसमें 60 श्लोक प्रमाण है 30 मिनट का समय आराम से इसका पाठ करने में लगता है | कुछ अर्थ समझ में नहीं भी आता हो तो भी पाठ करना चाहिये| इसका लाभ  अवश्य मिलेगा | आप लोग जब इसका पाठ कर रहे थे तो मै बैठा – बैठा सुन रहा था अच्छा लगा | मूलाचार में भी यह प्रसंग आया है कि शास्त्र मात्र का पढ़ना ही स्वाध्याय नहीं है बल्कि स्तुति पाठ आदि भी स्वाध्याय में आता है | नियमसार में आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने 28 मूलगुणों में स्वाध्याय को नहीं रखा क्योंकि गुरु स्तुति, देव स्तुति, गुरु वंदना, देव वंदना, प्रतिक्रमण आदि स्वाध्याय के अंतर्गत ही आ जाते हैं | इसके माध्यम से कम समय में ज्यादा लाभ होता है | द्रव्य संग्रह का पाठ आधे घंटे में शांति के साथ आराम से हो जाता है | यदि मुखाग्र हो जाये तो एकांत में बैठकर इसका पाठ किया जा सकता है | इष्टोपदेश, नन्दीश्वर भक्ति, द्रव्य संग्रह, स्वयंभू स्तोत्र आदि का पाठ करने से बहुत लाभ होता है | स्वयंभू स्तोत्र को आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने २००० वर्ष पूर्व लिखा था जिसमे २४ तीर्थंकरों कि स्तुति कि गयी है | जिसको पढने से मन गद-गद हो जाता है | जब प्रमाद आता है तो पाठ करने से प्रमाद बंद हो जाता है लेकिन इसमें लगन होना आवश्यक है | इसका संस्कृत में जो पाठ है वह बहुत क्लिस्ट है जिसे आप लोगो को पढना बहुत कठिन लगता है | रत्नकरंड श्रावकाचार में १५० श्लोक है यदि प्रतिदिन ५० -५० – ५० किया जाये तो 3 दिन में पूरा हो सकता है और यदि सुबह से शुरू कर शाम को अर्घ्य चढ़ा सकते हैं | कभी – कभी हिंदी बहुत रोचक हो जाती है मातृ   भाषा में होने से इसका अर्थ आसानी से समझ में आता है तो रोमांचित हो जाते हैं | इसके माध्यम से स्वाध्याय का लाभ मिल सकता है | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी नीलू दीदी, बबिता दीदी रांझी जबलपुर निवासी परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन,मनोज जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के ससंघ के चातुर्मास कलश स्थापना 2 जुलाई २०२३ दिन रविवार को होगी | क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |