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गुरु ने मुझे गुरु समय दिया लघु बन्ने के लिये

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दीक्षा ली जाती है दी नहीं जाती और पद दिया जाता है लिया नहीं जाता – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि स्मृति वर्तमान में होती है लेकिन उसका अनुभव नहीं होता है | आचार्य कुंदकुंद ने बताया कि दीक्षा के  दिन को याद करने से क्या होता है | दीक्षा के दिन को याद नहीं करना किन्तु दीक्षा क्यों धारण किया है उसको याद रखने को कहा है | आप लोग घरों में प्रवेश करते हैं जब कहीं जाते हैं तो लौटकर वापस घर ही आते हैं | किन्तु दीक्षा होने के उपरांत लौटने कि बात नहीं होती है | यदि लौटना ही है तो फिर जाना नहीं चाहिये | इस रहस्य को जो समझ गया वह कभी लौटने कि बात नहीं करता वह सिर्फ आगे बढ़ते जाता है और जो दीक्षा उपरांत छोटे घर से निकल कर बड़े घर में रह रहा है उसे यह रहस्य अभी भी समझ में नहीं आया है | दीक्षा ली जाती है दी नहीं जाती और पद दिया जाता है लिया नहीं जाता | जब दीक्षा लेते हैं तो गुरु का आशीर्वाद भी रहता है | यथायोग्य दीक्षा के उपरांत नियमों का पालन आदि रुचिपूर्वक एवं श्रद्धान के साथ करते हैं | स्मृति का हमें अनुभव नहीं हो सकता, वर्तमान में प्रत्यक्ष होता है वही अनुभव में आता है | संसार सब कुछ दिख रहा है लेकिन देखने वाला नहीं दिखता | गुरु ने मुझे गुरु समय दिया लघु बन्ने के लिये | पहले मुनि महाराज जंगलों में रहते थे वहाँ उन्हें जिन बिम्ब का दर्शन नहीं होता था तो वे परोक्ष में ही बिम्ब का दर्शन कर लेते थे | गुरु ने पद दिया है निर्वाह करना है जब तक चल रहे है ठीक है जब खीचने लग जायें तो यहाँ पर खीचा – तानी नहीं होना चाहिये | यह बहुत बड़ा पद है जिसको लघु बनकरके शक्ति को विकसित किया है |

जिस प्रकार रेल में चालक और गार्ड होता है | गार्ड जब हरी झंडी दिखाता है तभी चालक रेल को आगे बढाता है और जब गार्ड लाल झंडी दिखाता है तो चालक रेल को वही रोक लेता है | स्मृति का अर्थ शास्त्र होता है और उसका दूसरा अर्थ लिखा हुआ भी होता है | पहले फलक पर लिखा जाता था जिसे पढ़कर उसका पालन करते थे | भगवान से यही प्रार्थना है कि लघु से लघुतर, लघुतर से लघुतम बनु | यहाँ लघु से आशय छोटा है किन्तु उसका दूसरा अर्थ हल्का है | जैसे एक कढाई में घी को चुरोते हैं फिर उसमे कच्ची पूरी डालते हैं जब उसमे कच्ची पूरी डालते हैं तो वह निचे जाती है क्योंकि उसमे पानी का भार था और जब वह चुरने लगती है और आप लोग उसमे ऊपर से घी का अभिषेक करने लगते हो तो उसका सारा पानी निकल जाता है और वह हल्की – फुल्की होकर ऊपर आ जाती है | हल्की मतलब भार कम होना और फुल्की मतलब फूलना (अच्छा लगना) | इसी प्रकार हमें हल्का होना है पूरी कि भांति लेकिन उसके लिये हमें इस चुरनी को सहन करना पड़ेगा | गुरु जी ने आचार्य पद को त्याग कर दिया था क्योंकि मुनि बनकर ही सल्लेखना ले सकते हैं | मुनि दीक्षा का अंतिम लक्ष्य सल्लेखना ही होता है | आज आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का 56 वा मुनि दीक्षा दिवस श्री दिगम्बर जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र में बड़ी धूम धाम के साथ मनाया गया | प्रातः भगवान का अभिषेक, शान्ति धारा, पूजा हुई फिर आचार्य श्री कि पूजा बहुत भक्ति भाव से अष्ट द्रव्य को बड़ी – बड़ी  थाल में सजाकर कि गयी | तत्पश्चात आचार्य श्री का प्रवचन हुआ फिर आचार्य श्री के आहार के बाद भंडारा का आयोजन किया गया जिसमे सभी ग्रामीण एवं शहर के लोगो ने सम्मिलित होकर कार्यक्रम को सफल बनाया | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री सुरेश कुमार रेखा जैन, सिद्धार्थ जैन, ब्रह्मचारिणी रीना दीदी बाबरिया परिवार रामगंज मंडी राजस्थान निवासी को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है |