रामगंजमंडी – जीवित पशुओं को कमोडिटी मानकर उनका निर्यात करना भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात है भारत की सभ्यता,यहां की धार्मिक मान्यताएं इस कार्य की किसी भी कीमत पर ईजाजत नहीं देती है और ना ही समर्थन करती हैं । वैसे तो भारत का सब अनुसरण करते हैं किंतु भारतीय सभ्यता संस्कृति ऐसे विधेयक लाकर किस ओर जा रही है यह बड़ा ही चिंतन का विषय है। हमारी मानसिकता में इतना परिवर्तन कैसे आ गया कि हम ऐसे क्रूर विधेयक को लाने की तैयारी कर रहे हैं ।
मूक पशु की पीढ़ा मूक हैं हम कह नही सकते चिंघाड़े बिना रह नही सकते जो कराह उठी चीत्कार बनी साहिब फिर विनाश को रोक नही सकते संजय जैन बड़जात्या कामां का कहना है की लाइव स्टॉक एक्सपोर्ट बिल का सभी को एक स्वर से विरोध करना चाहिए। जहां पाश्चयात देश शाकाहार की ओर लौट रहे हैं वही भारतीय मांसाहार की तरफ बढ़ रहे हैं पशुपालन विभाग से सभी मांग करे कि जीवित पशुओं के आयात निर्यात विधेयक का ड्राफ्ट रद्द किया जाए ।