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पशुधन को निर्यात किया जाना भारतीय संस्कृति और उस के मूल्यों के साथ खिलवाड़

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कलयुग की ये कैसी बलिहारी है पशुधन को विदेश में भेज बेचने की तैयारी है

कोटा – संपूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति बडी श्रद्धा और भक्ति से देखी जाती है । विश्व में पूर्व की संस्कृति पूजनीय वंदनीय अभिनंदनीय है पावन है। राम कृष्ण महावीर  महात्मा बुद्ध के देश में यह क्या हो रहा है जीवित पशुओं का विदेशों में निर्यात का व्यापार हो रहा है। एक कहावत है राम राज में दूध था कृष्ण राज में घी । जहां भगवान कृष्ण जी गो वंश के साथ रहा करते थे। आज की वर्तमान सरकार जीवित पशुधन गाय, बैल, भेस, जानवरो को विदेश भेजने का विधेयक ला रही हैं यह भारतीय संस्कृति के इतिहास में कलंक का दिवस होगा। कलयुग की  ये  कैसी बलिहारी है पशुधन को विदेश में भेज बेचने की तैयारी है। गो माता के खुरो में लक्ष्मी का वास प्रवास होता है। भारत में जगह जगह गौशाला में संचालित की जा रही है ।अभी तक  तो कच्चा मांस ही निर्यात किया जाता था अब जीवित पशु धन को भी निर्यात करने की तैयारी की जा रही है। भगवान राम कृष्ण महावीर और गौतम बुद्ध के देश में पशुधन को निर्यात किया जाना भारतीय संस्कृति और उस के मूल्यों के साथ खिलवाड़ कहा जाएगा। हम  प्रकृति और  संस्कृति के साथ खिलवाड़ नहीं  करे। संस्कृति में विकृति करने का   परिणाम कोरोना महामारी के रूप में संपूर्ण विश्व ने देख लिया। कोरोना के कहर ने सादगी से जीवन जीने का सलीका सीखा दिया था। जापान के बुहान शहर न  जाने कितने प्रकार के जिंदा जीवित जानवरों को मार करके खाया जाता था जब प्रकृति और परमात्मा ने सभी को जीने का अधिकार दिया है तो फिर हम उन्हें मौत के घाट उतारने वाले कोन होते है। जब जब भी इस धरती पर निरीह मूकप्राणीयो  के ऊपर हत्याचार हुए हैं जब जब शासन-प्रशासन ने उनके दुख दर्द और पीड़ा को नहीं सुना जाना है तब तब उनकी पीड़ा को दुख को दर्द को प्रकृति और परमात्मा ने सुना  है और जब प्रकृति और परमात्मा उनकी पीड़ा को सुनते हैं तो फिर विकृति के रूप में सुनामी अतिवृष्टि अनावृष्टि ओलावृष्टि प्लेग  कोरोना महामारी  जैसी स्थिति आ जाती है। हमें विकृति के बाजार में संस्कृति का शंखनाद करना है संस्कृति में विकृति पैदा नहीं करना है।