रायपुर – भाग्योदय तीर्थ में विराजमान प्रथम निर्यापक ज्येष्ठ श्रेष्ठ मुनि श्री 108 समय सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि अरिहंत, सिद्ध, आचार्य एवं उपाध्याय यह चार ही शरण है, चार ही मंगल है। हमें अपने ह्रदय में भगवान को बिठाना बहुत कठिन है, प्रभु की आराधना करने के लिए कई चातुर्मास गुजर जाएंगे। एक छात्र गुरुदेव के पास आकर कहता है कि मैं 18 से 20 घंटे पढ़ाई करता हूं परंतु मेरा मन स्थिर नहीं हो पाता, कृपया उपाय बताएं, गुरुदेव ने कहा मन तो स्थिर ही है, पर हम जो चाहते हैं मन वहां पहुंच जाता है। लोग कहते हैं कि हम भगवान की पूजा करते हैं पर वो प्रसन्न नहीं होते, ऐसा क्यों है, भगवान प्रसन्न तब होते हैं जब आप उनकी आज्ञा का पालन करते हो। गुरु प्रसन्न तब होते हैं जब उनकी आज्ञा का अक्षरसा पालन किया जाता है। गुरु की, भगवान की वंदना करना सीखो। हृदय में जब तक गहराई नहीं होगी, कर्म नहीं कटेंगे। भगवान अपनी साधना के माध्यम से ही पूज्य बने हैं। हमें मन वचन काय के समर्पण के साथ प्रभु की भक्ति करना चाहिए। भगवान ने संसार को छोड़ दिया है, पर हम भगवान से सांसारिक चीजें ही मांगते हैं जो गलत है। भगवान के पास तो अनंत गुण रूपी राशि विद्यमान है वह हमारे अंदर भी प्रकट हो इसके लिए प्रभु चरणों में जरूर निवेदन करना चाहिए। गुरुदेव की आज्ञा का पालन करने से पथिक भी पावन बन सकता हैं। मुनि सेवा समिति सदस्य मनोज जैन लालो ने बताया की मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ससंघ (6 पिच्छी) का वर्षा कालीन मंगल चातुर्मास भाग्योदय तीर्थ में होने जा रहा है।
मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में सागर की विशेषताएं बतलाते हुए कहा सागर में गुणधर्म बहुत हैं परंतु दोष एक मात्र ही है सागर का पानी खारा होता है। सागर अपने में सब को समाहित कर लेता है। नदियां अपने साथ कचरा लेकर आती हैं, लेकिन सागर कचरा को स्वीकार नहीं करता, वह कचरे को किनारे पर फेंक देता है। सागर को गंदगी कतई पसंद नहीं है। सागर के खारे पानी की विशेषता यह है कि वह भी मानसून के माध्यम से मीठा पानी प्रदान करता है। आचार्य गुरुदेव विद्यासागर जी महाराज की कृपा सागर वालों पर बरसती नहीं, अपितु झड़ी लगी रहती है। मुनि श्री ने कहा कि मेरे शिक्षा गुरु पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समय सागर जी ही है। मेरे पास आज जो कुछ भी है, मैं संयम के मार्ग पर चलकर जितना भी आगे बढ़ा हूं वह सब आचार्य गुरुदेव की कृपा ही है। मुनि श्री ने कहा कि इस चातुर्मास में मानसिक रूप से दिमाग में कचरा इकट्ठा नहीं करना ही सबसे बड़ी सफलता है। कार्यक्रम का संचालन मुकेश जैन ढाना ने किया।