जतारा – साधक जीवन हो अथवा श्रावक जीवन हो, जीवन में सज्जन और दुर्जन की परिचान अवश्य होना चाहिए।सर्व प्रथम आत्मावलोकन करके स्वयं की पहिचान करना कि मैं स्वयं सन्जन हूं या दुर्जन । यदि आप दुर्जन है तो “अब मैं सज्जन बनूंगा” ऐसे स्वयं को संकल्पित करें और सज्जन पुरुषों, गुणवान पुरुषों की संगति करे, किन्तु दुर्जन पुरुषों की संगति कभी न करें।
कैसे जाने कौन सज्जन कौन दुर्जन :- किसी व्यक्ति की रुचि दुष्ट पुरुषों में होती है तो किसी की रुचि सज्जन पुरुषों में होती है। हम कैसे जाने कि हमारी किसमें है, अथवा मैं किस रूचि वाला हूँ। आप किसी ऐसे पुरुष को देखकर जो दुर्गुणों से भरा हो, दुष्ट प्रवृत्ति वाला हो व्यर्थ अपलाप करता हो,दूसरों की निंदा, हंसी मजाक करने वाला हो,असभ्य हो, बकवास में प्रवृत्ति रखता हो,यदि ऐसे पुरुष को देखकर आपको प्रसन्नता होती है उसकी संगति में खुशी मिलती हो, ऐसा चिंतन आता हो कि चलो थोड़ा मनोरंजन कर लेते हैं ऐसी आपकी प्रवृत्ति आपकी दृष्ट रुचि का प्रमाण पत्र है। आपको गुरु वचनों को सुनकर, धर्मात्मा जीवों को देखकर, उनके गुणों की प्रशंसा सुनकर, हर्ष हो, गुणानुवाद की भावना जाग जाए तो समझना आप स्वयं ही सज्जन पुरुष हैं। सज्जन को सज्जन रुचिकर लगते हैं, उनकी निकटता सुहाती है, सज्जन को ही साधुवचन मंगलकारी अनुभव में आते हैं। किसी अपरिचित व्यक्ति से भी वार्तालाप करके आप उसकी सज्जनता अथवा
दुर्जनता की पहिचान कर सकते हैं। सज्जनता और दुर्जनता की पहचान आवश्यक क्यों :- इसकी पहचान अत्यंत आवश्यक है, इनकी पहचान के बिना आप दुर्जन की संगति को प्राप्त होकर ऐसी कठिन परिस्थिति को प्राप्त हो सकते हैं जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। इनकी पहचान करना अपने बच्चों को अवश्य सिखाना चाहिए। ‘आप हमेशा उनके साथ नहीं रहेंगे, उनके जीवन में ऐसे भी क्षण आएंगे जब ये अपने निर्णय स्वयं लेंगे उस समय उन्हें सज्जनता की पहिचान होना चाहिए गुणवान बनना है तो गुणवानो की संगति अवश्य करना चाहिए । भारतीय जैन संगठन तहसील अध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्रीमती रानी- सपन जैन, पार्श्वी जैन गोयल परिवार सागर को प्राप्त हुआ, धर्म सभा में महेंद्र टांनगा राजीव माची,पवन मोदी,महेश व्या, संतोष टांनगा, अरविंद चौधरी, सुधीर बंसल सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे ।