डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है । आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि प्रायः सुनने में आता है कि जैनियों का धर्म बहुत कठिन होता है । ऐसा आप लोगो को भी सुनने को मिलता होगा । सही भी है आयुर्वेद में लिखा है कि बादाम खाने से बुद्धि मिलती है और पिस्ता पिस पिस खाने से बुद्धि मिलती है । हम कहते हैं कि “ठोकर खाने से बुद्धि मिलती है” । जैन धर्म इसलिए कठिन है क्योंकि यहाँ त्याग को महत्त्व दिया गया है । एक प्रकार से बुद्धि मिलती है नमक न खाने से । इसलिए कहते हैं बड़े – बड़े जो ग्रन्थ है उन ग्रंथों में प्रवेश पाने के लिये आचार्यों ने श्रावकों को जागृत रहने के लिये कहा कि आप रसों से दूर रहिये । यदि आप अच्छा स्वास्थ्य चाहते हो तो चटक – मटक और बड़े – बड़े होटलों के नाम से जो आपके मुह में पानी आ जाता है उन सबसे दूर रहने कि आवश्यकता है । इस सब के सेवन से आँतों में पानी नहीं आएगा उस पर भार बढ़ते जायेगा तो आंत कमजोर हो जाएगी । सर्वप्रथम जब बच्चा ६ माह का होता है तो उसे प्रायः विशेष रस नहीं दिया जाता है जबकि उसे दूध, शक्कर पानी, घी और गाय के दूध में थोडा पानी मिलाकर दिया जाता है जो सबसे अच्छा है । विषयों से बचिए और भीतरी प्रतिभा, चेतना के साथ जिसके पास बहुत उन्नति कि क्षमता विद्यमान है । उस क्षमता को उदीप्त करना चाहोगे, तीखी बनाना चाहोगे, सार को ग्रहण करना चाहोगे तो निरंतर व्यसनों से दूर रहिये । सल्लेखना के लिये अनसन अनिवार्य है । अभी सारा खान – पान के ऊपर आयुर्वेद, मूलाचार खड़ा है । ऐषणा समिति, चार तप में भी रस का परित्याग, त्याग रहता है । परित्याग और त्याग में भी अंतर होता है । छोटे बच्चे से लेकर बूढ़े तक को स्वास्थ्य के हिसाब से थोडा – बहुत लिया करो बोलते हैं तो वे थोडा को छोड़ देते हैं और बहुत ले लेते हैं इससे उनके स्वास्थ्य में प्रभाव पड़ता है इसलिए हम अब बहुत थोडा लिया करो कहते हैं । ठोकर खाने से बुद्धि आती है । मुनि महाराज के लिये ठोकर – आलस, रसों कि ओर नज़र रखना, कठिनाइयों से बचना आदि है । टियूब जिसे पाइप भी कहते हैं वेल मतलब कूप यहाँ टियूब वेल करने के लिये ५०० – ५०० फीट खोदा जाता है और पानी के बूंद तक नहीं मिलती है । दक्षिण में कूप ही खोदा जाता है वहाँ 40 हाँथ ५० हाँथ ६० हाँथ निचे पानी मिलना प्रारंभ हो जाता है और कभी –कभी पाषाण खंड को चुरचुर कर पानी फौवारें कि तरह बाहर आता है । साल भर पानी लबालब भरे रहता है । गर्मी में जब लू चलती है तब भी कूप का जल ठंडा रहता है । एक साथ तत्व हाँथ में नहीं आता इसके लिये प्रयास कि आवश्यकता होती है । एक बार मैने गुरु जी से 1 माह का नमक त्याग का नियम लिया था फिर प्रत्येक दिन गिन – गिन कर निकलता था और 1 माह कब होगा यह विकल्प रहता था । जैसे ही एक माह हुआ मै गुरु जी के पास गया और कहा 1 माह नमक त्याग का अभ्यास हो गया लेकिन नंबर कम आया । बार – बार इसी का विकल्प रहता था फिर मैंने ठान लिया कि अब इसे जीवन पर्यन्त के लिये त्याग दूंगा जिससे सारा विकल्प ही समाप्त हो गया । क्योंकि ये सारे के सारे रस, गंध, स्पर्श, जन्म, मरण पुदगल का ही है । आत्मा इससे भिन्न है ये रस, गंध, स्पर्श, जन्म, मरण आत्मा का वैभव नहीं है । जहाँ आत्मस्थ हो जाओ चेतना वहीँ खड़ी मिलेगी । यह शब्दातीत है । विद्यार्थी जब १६ वी कक्षा पास कर शोध के लिये जाता है तो वह पूरे पुस्तक भंडार से अपने काम कि पुस्तकों से शोध से सम्बंधित विषय को बहुत जल्दी – जल्दी पढ़कर खोज लेता है । यहाँ उसको ज्यादा पुरुषार्थ कि आवश्यकता नहीं पड़ती है । कुछ छात्र कहते हैं कि महाराज हमें कुछ याद नहीं होता । हमने कहा बहुत अच्छा है आपको कुछ स्मरण नहीं रहता है । सब भूल जाओ कौन आपका बैरी है कौन आपका परम मित्र है उसे सबसे पहले भूलो तभी सल्लेखना सफल होगी । आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य ब्रह्मचारिणी नीता दीदी, मंजू दीदी, नीलम दीदी, प्रज्ञा दीदी, मीना दीदी, सुनीता दीदी ललितपुर (उ. प्र.) निवासी परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,कार्यकारी अध्यक्ष श्री विनोद बडजात्या, सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, सिंघई निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी । श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है ।यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है । यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है । यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है। आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है । कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके । उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी सिंघई निशांत जैन (निशु) ने दी है ।