Home धर्म - ज्योतिष दानियों का दान कभी नष्ट नहीं होता, धनबानों का धन हमेशा साथ नहीं...

दानियों का दान कभी नष्ट नहीं होता, धनबानों का धन हमेशा साथ नहीं रहता – भावलिंगी संत आचार्य विमर्शमागर जी महा मुनिराज 

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जतारा – मनुष्य अपने जीवन में सुख प्राप्ति के लिए लक्ष्मी को संग्रहीत करने का ही पुरुषार्थ करता रहता है लेकिन धन लक्षी के आने वाले द्वार,अर्थात कारण, को नही जानता। बन्धुओं एक बात हमेशा याद रखना मात्र क्रिया कर्म करने से धन की प्राप्ति नहीं होती ‌धन प्राप्ति का भी एक मुख्य कारण है, वह है आपके द्वारा किया गया पूर्वकाल में पुरुषकर्म । बिना पूर्वकृत पुण्योदय  के बिना मात्र पुरुषार्थ करने से आज तक किसी को धन की प्राप्ति नहीं हुई। हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि कई लोग मेहनत तो दिन- रात करते है, किन्तु उन मनुष्यों को अपने दो समय के भोजन की भी व्यवस्था नही हो पाती। और हम ऐस लोगों को भी देखते है जो मेहनत के नाम पर कुछ भी नही करते लेकिन उनके जीवन धन आने के द्वार चारों ओर से खुले रहते हैं वे कहते हैं – गुरुदेव! आपकी कृपा से धन की तो मानो बरसात ही हो रही है। इसीलिए मैंने कहा- कोरे पुरूषार्थ से आपका घर धन  से नही भर सकता घर को दान से भरने के लिए पुण्य  की प्रथम आवश्यकता है। अतः ध्यान रखो पुण्य की प्राप्ति के लिए सर्वोत्कृष्ट  जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करते रहना चाहिए। बन्धुओं! ये धनलक्ष्मी कुलीन, धैर्यशाली,पण्डित,शूरवीर, पूज्य   धर्मात्मा, सुन्दर,सज्जन,पराक्रमी आदि किसी भी पुरुष में अनुरक्त नहीं होती। हम सभी जानते है राम लक्ष्मण महापुरूष थे, सुन्दर थे, धर्मात्मा थे, शूरवीर थे, लेकिन उनके जीवन में भी जब संघर्ष के क्षण आए तब लक्ष्मी ने उनका भी साथ छोड़ दिया। ध्यान रखना, बन्धुओं यदि जीवन को सुख शान्तिमय बनाना है तो पूर्व पुण्योदय से जो धन लक्ष्मी का संयोग प्राप्त हुआ है उसका आज से ही सदुपयोग करना प्रारंभ  कर दीजिए | भगवान की शक्ति से प्राप्त पुण्य से जो धन लक्ष्मी  का संयोग प्राप्त हुआ है उसे भगवान के ही चरणों में समर्पित कर अपने पुण्य को अनंतगुणा बढ़ा लीजिए । 

नगर गौरव आचार्यश्री ने जन्मभूमि जतारा में की ग्रीष्मकालीन वाचना निष्ठापन

जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने वताया कि विगत 02 मई 2023 को नगर गौरव आचार्य श्री ने ग्रीष्मकालीन वाचना की स्थापना की थी। यह श्री कार्तिकेयानुप्रेक्षा ग्रंथ पर ग्रीष्मकालीन वाचना निर्विघ्न पूर्ण हुई। चातुर्मास का काल निकट होते ही सम्पूर्ण जैन समाज जतारा ने गुरू चरणों में  चातुर्मास हेतु मंगल निवेदन किया। कहा- गुरुदेव! जन्म भूमि पर आपका यह स्वर्णिम वर्षायोग अति आवश्यक है। अतः हमारी समाज को मंगल चातुर्मास का पावन आशीष प्रदान करें।