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सुव्यवस्थित जीवन ही सक्रिय जीवन – परम पूज्य आचार्य श्री विमर्श सागर जी महा मुनिराज

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जतारा – आज मैं विचार कर रहा था कि आलस्य शब्द का सर्वाधिक प्रयोग किसके लिए होता है ? तो महसूस हुआ कि आलस्य शब्द का सबसे अधिक उपयोग मनुष्य के लिए किया जाता है । प्रकृति को जब हम देखते हैं तो वह अपने समयानुसार संचालित है, सूर्योदय, सूर्यास्त का जो काल निश्चित है, सूर्य अपने समय से उदय होता है और समय होने पर अस्ताचल को प्राप्त होता है। प्रातः काल पक्षी गणों को देखें जिनके पास जीवन जीने के वाह्य साधन नहीं है उन्हें कोई जगाता नहीं है किन्तु समय होते ही वे स्वयं उठ जाते हैं, चह-चहाने लगते हैं । पहले घरों में पशु रहते थे, वे समय से जंगल जाते और शाम को स्वमेव लौट आते थे । ये सब समय से निद्रा लेते हैं, समय पर जागते हैं और अपना जीवन सुव्यवस्थित ढंग से जिया करते हैं । प्रकृति अपने नियमानुसार सहज, सुव्यवस्थित ढंग से चल रही है। एक मात्र मनुष्य है जो आलस्य को प्राप्त हो जाता है, शास्त्रों पुराणों में जितनी प्रेरणा,शिक्षायें,मर्यादाये बताई है वे सिर्फ मनुष्य के लिए है। जहां आलस्य आता है वहां सक्रियता नहीं रह जाती वहां जिंदगी भागम भाग हो जाती है, और आप उसे सक्रियता मान बैठते हैं बैठते है जो आपकी बड़ी भूल है। पूज्य आचार्य गुरुवर ने सक्रिय जीवन जीने के लिए दिव्य सूत्र देते हुए कहा –

सक्रिय जीवन के दिव्य सूत्र 

● अपने जीवन में कुछ स्थायी स्तंभ तैयार कीजिए, जैसे समय पर उठेंगे और समय पर सोयेंगे, उठकर प्रार्थना, भावना, देवदर्शन, पूजन, स्वाध्याय आदि यें कार्य तो मुझे करना ही है दिनभर मे भी, अन्य भी आवश्यक कार्य तो करना ही है। जब ये स्थायी स्तंभ आपके जीवन में होगे तो जीवन सुव्यवस्थित होगा ।

● सक्रियता जितनी आवश्यक है उससे भी पहले सक्रियता के लिए दिनचर्या का सुव्यवस्थित होना आवश्यक है,दिनचर्या से ही सक्रियता का मूल्यांकन होता है।

● भागमभाग का नाम सक्रियता नहीं है,अपने समय पर सम्यानुकूल कार्य करने का नाम सक्रियता है।भागम-भाग की जिंदगी शांति अनुभव नहीं कराती।

●  अव्यवस्थित दिनचर्या झुंझलाहट, अव्यवहारिकता, तनाव और असफलता ही देती है।सक्रिय घड़ी दीवाल पर शोभा पाती है इसके साथ यह भी ध्यान रखा जाता है कि घड़ी सही समय बताती हो वैसे ही, आप कार्य में सक्रिय तो है इसके साथ क्या आप उस कार्य को योग्य समय पर क्रियान्वित करते हैं। यदि हां तो आपका जीवन शोभनीय है।

●आप स्वयं को देखने का प्रयास करें,अपने जीवन को समझे कि हम स्वयं सक्रिय है या जबरन सक्रिय किए जाते हैं- खिलौने की तरह। माना कि प्रारंभिक जीवन खिलौने की तरह जिया जा सकता है किन्तु सम्पूर्ण जीवन को ही खिलोना नही बनाया जा सकता। जिंदगी को खिलौना मत बनाइये और न ही जिंदगी के साथ खेलिये। आप अपनी दिनचर्या  सुव्यवस्थित बनाये और जीवन को सक्रियता प्रदान करें इससे ही जीवन में सुख-शांति अनुभव मे आती है । जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्रीमति प्रभादेवी-श्री चंद्र,श्रीमति अल्पना-पवन कुमार, वंदना-पवनेश,मंजू-पदम चंद्र जैन प्रगति,डा0प्राची जैन समस्त माते परिवार जतारा एवं श्रीमती पुष्पा-घनश्याम जैन, प्रिया-नीरज जैन (पटवारी) प्रसिद्धि जैन, सेठ परिवार सरकनपुर को सामूहिक रूप से प्राप्त हुआ ।