जतारा – इस वसुंधरा पर अनेक दर्शन प्रचलित हैं। उन सब दर्शनों में अनेकान्त और स्यादवाद, चिन्ह से चिन्हित जैन दर्शन अनादि काल से विद्यमान है और अनंतकाल तक भव्य प्राणियों को मुक्ति मार्ग प्रदर्शित करता रहेगा । जैन धर्म का अनेकान्त सिद्धांत वस्तु को अनेक धर्मात्मक बतलाता है जो प्राणियों के समस्त विवादों को दूर कर सही मार्ग प्रदर्शित करता है। संसार में प्रत्येक वस्तु अनित्य है वही वस्तु अन्य दृष्टि से नित्य भी है। वस्तु द्रव्य दृष्टि से नित्य है वही वस्तु पर्याग की दृष्टि से अनित्य भी है। आज विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि द्रव्य का कभी भी नाश नहीं होता अपितु उसकी अवस्थायें बदलती रहती हैं। जिस सिद्धांत को आज विज्ञान सावित कर रहा है उन सिद्धांतों में भगवान महावीर स्वामी ने, प्रथम तीर्थकर आदि भगवान ने अपने समवशरण सभा में हजारों-करोड़ों वर्ष पहले ही भव्य प्राणियों को उपदेश दिया । मनुष्य अपने जीवन में अनेक पदार्थों के संयोग को प्राप्तकर उनके वास्तविक स्वरूप से अपरिचित रहता है। पर्याय अर्थात किसी अवस्था विशेष को ही नित्य मानकर उन पदार्थों में ही सुख-दुःख की कल्पना करते हुए हर्ष-विषाद में पड़े रहते हैं। कभी उस पदार्थ की नित्य अवस्था पर दृष्टिपात नहीं कर पाते । अनित्य पदार्थों को देख-देखकर व्यक्ति अपने परिणाम खराब करता रहता है क्योंकि अनित्य पदार्थ आज मौजूद हैं तो कल वियोग को प्राप्त हो जाते हैं। वही पदार्थ द्रब्य दृष्टि से देखने पर शास्वत दिखाई देते है, आज व्यक्ति अज्ञानता में अथवा कषायवश, पर पदार्थों के निमित्त से अनेक प्रकार के कर्मबंध अपनी आत्मा के साथ किया करता है। जब वे ही कर्म उदय में आते हैं तो दुखी होकर नवीन कर्मों का बंध कर लिया करता है। आपका कर्म यदि धर्म की शरण को प्राप्त हो जाए तो महानता को प्राप्त हो जाता है। धर्म से रहित कर्म स्वच्छंद होकर जीव की दुर्गति में कारण बन जाता है। यदि आप धर्म की शरण में है तो आपका तन-मन-धन सब शुरू हो जाएगा। शुद्धता धर्म की शरण में ही प्राप्त होती है। जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्री मति बबीता-विनय कुमार, वैभव,आरजू,विवेक जैन समस्त बीड़ी परिवार एटा को प्राप्त हुआ । धर्म सभा में महेंद्र जैन टांनगा, पवन मोदी, सुनील बंसल, अशोक माते, संतोष टानगा सहित कई श्रद्धालु उपस्थित रहे ।