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भाग्य को संवारने का कार्य करता है आपका पुरुषार्थ – श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महा मुनिराज 

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जतारा – भाग्य सभी लेकर आते है, इस जगत सभी भाग्यशाली बनकर आते हैं,दुर्भाग्यशाली कोई भी बनकर नहीं आता, हां अब आप अपने पुरुषार्थ से उस भाग्य को सौभाग्य में बदल रहे हैं या दुर्भाग्य में, ये आप पर निर्भर है । जीवन की परीक्षा मे कोरा कागज सभी को प्राप्त होता है यह आपका भाग्य है, लेकिन आप उस कोरे कागज पर कुछ अच्छा लिख रहे है तो आप अपने भाग्य को सौभाग्य में बदल रहे हैं और यदि आप अपनी कलम से उस पर गालियां लिख रहे हैं, उसे खराब कर रहे है तो आप स्वयं ही अपने भाग्य को दुर्भाग्य में बदल रहे हैं। इस मनुष्य जीवन में याक्ति को मात्र वचन वर्गणायें मिली हैं अब ये आपका पुरुषार्थ है कि आप अपने मीठे वचनों से उन वचन वर्गणात्रों को सार्थक कर रहे हैं या दुर्वचनो या गालियों द्वारा उन्हें बरबाद कर रहे हैं।

मनुष्य जीवन प्राप्त कर जो सम्यक पुरुषार्थ करता है वह अपने भाग्य को सवांर कर सौभाग्य में बदल लेता है और जो खोटा पुरुषार्य करता है वह अपने भाग्य को दुर्भाग्य में बदल लेता है। मनुष्य जीवन में व्यक्ति को सभी योग्यताएं प्राप्त है किन्तु व्यक्ति खुद ही अपनी योग्यताओं के साथ न्याय नहीं करता है। मनुष्य को अच्छे बचन बोलने की योग्यता प्राप्त है, मन के द्वारा अच्छा, श्रेष्ठ, चिंतन-विचार करने की योग्यता उपलब्ध है, शरीर से शुभ और श्रेष्ठ चेष्टायें कर सकता है और अपने भाग्य को सौभाग्य मे  में बदल सकता है लेकिन अपने मन, वचन और शरीर को दुष्कर्मों में लगाकर व्यक्ति अपने भाग्य को दुर्भाग्य में परिवर्तित करता रहता है। आपको लगता है कि यह व्याक्ति गलत है, ठीक है वह व्यक्ति गलत है लेकिन आप उसका कभी बुरा न सोचे, कभी उसका बुरा न करे और अपने परिणामों को अच्छा रखें, कभी किसी का अहित न विचारे, वह व्यक्ति बुरा है तो वह स्वयं का अहित करता है, किन्तु आप सबके प्रति अच्छे विचार लाकर अपना ही हित कर रहे है ,ये आप स्वयं के साथ न्याय कर रहे हैं यदि आप उसका अहित विचारते है तो आप स्वयं का ही अहित कर रहे है यही आपका स्वयं के साथ अन्याय है। आपका भाग्य  आपके हाथ मे है आप अपने पुरुषार्थ द्वारा उसे कैसा बना रहे है सौभाग्य अथवा  दुर्भाग्य ! उक्त उद्गार परम पूज्य जतारा नगर गौरव, आचार्य विमर्श सागर जी महाराज ने श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर में धर्म सभा में दिए । जैन समाज उपाध्यक्ष अशोक कुमार जैन ने बताया कि भक्तामर महामंडल विधान के माध्यम से पुण्यार्जन करने का सौभाग्य श्रीमती कुसुम जैन, श्रीमती कविता- जिनेंद्र जैन, काव्या, जतिन, अमन जैन समस्त सेठ कंजना परिवार को एवं पूज्य आचार्य गुरुवर को आहार दान देने का सौभाग्य श्रीमती ज्योति- देवेंद्र कुमार, राखी- चंद्र प्रकाश,रीना- नीरज जैन समस्त सगरबारा परिवार को प्राप्त हुआ ।