वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी में रामायण पर शोध पीठ की स्थापना की जा रही है जिसमें सभी भाषाओं में रामायण और रामचरितमानस की चौपाइयां पर शोध किया जाएगा.
इसके साथ ही रामचरितमानस मानस की जिस चौपाई पर विवाद हो रहा है उस पर भी शोध किया जाएगा. जिसमें देशभर के विद्वत शोधार्थियों को यूनिवर्सिटी द्वारा सर्टिफिकेट दिया जाएगा. पिछले दिनों पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह जब बनारस के दौरे पर आए थे तो तब संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के कुलपति ने उनके सामने रामायण सर्किट की बातें रखी थी जिस पर मंत्री ने उन्हें हरी झंडी दे दी है. अब यूपी में पहली रामायण शोध पीठ की स्थापना वाराणसी के संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी में होगी.
कुलपति हरे राम त्रिपाठी का कहना है कि अयोध्या में बन रहा राम मंदिर, साल 2024 में बनकर तैयार हो जाएगा, तो वहां पर भी रामायण शोध पीठ की स्थापना हो रही है. उसी के तहत उन्होंने पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह बात की है, जिसके तहत संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ऐतिहासिक विश्वविद्यालय जिसका 232 वर्ष का इतिहास है, वहां रामायण शोध पीठ की स्थापना होगी. केंद्र सरकार द्वारा 2020 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत भारतीय भाषाओं का संवर्धन किया जा रहा है. जिसमें भारत में जितनी भी भाषाएं हैं जिसमें भारतीय भाषाओं में रामचरितमानस और रामायण उपलब्ध है. उसमें एक नया शोध कराया जाएगा.
रामायण शोध पीठ को लेकर छात्रों में उत्साह
रामायण शोध पीठ की स्थापना को लेकर छात्रों की तरफ से भी उत्साह देखने को मिल रहा है. छात्रों की माने तो रामायण शोध पीठ की स्थापना होने के बाद उनको रामायण के बारे में जानकारी हासिल होगी और वह शोध के माध्यम से रामायण की हकीकत को जानने समझने का प्रयास करेंगे. इसके साथ ही शोधार्थियों को यूनिवर्सिटी द्वारा सर्टिफिकेट भी दिया गया है जो उनके भविष्य के लिए उपयोगी साबित होगा.
संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के एक अन्य छात्र रितेश पांडेय ने कहा कि रामायण शोध जिसके तहत संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय ऐतिहासिक विश्वविद्यालय है जिसका 232 वर्ष का इतिहास है. केंद्र सरकार द्वारा 2020 के राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत भारतीय भाषाओं के संवर्धन किया जा रहा है. जिसमें भारत में जितने भी भाषाएं हैं उन सभी भाषाओं मे सम्मिलित रामचरितमानस और रामायण उपलब्ध है और इन पर शोध करना हम सभी छात्रों के लिए व हिन्दू समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.