Home प्रदेश कभी वामदलों का झारखंड में था दबदबा, अब कर रहे हैं राज्य...

कभी वामदलों का झारखंड में था दबदबा, अब कर रहे हैं राज्य की राजनीति में संघर्ष, ये है इसकी वजह

63
0

झारखंड में वामदलों का एक समय दबदबा था. जमीन से लेकर सदन तक संघर्ष करते थे. जन मुद्दों को लेकर आवाज उठाते थे. राज्य गठन के बाद जमीन पर चलने वाला इनका संघर्ष सदन तक नहीं पहुंच पा रहा है.

राज्य में मुख्य रूप से माकपा, भाकपा और भाकपा-माले राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय हैं.

चुनाव के वक्त आपस में मिल कर लड़ने का रास्ता तलाशने की कोशिश करते हैं. यहां के वामदलों का मूल एजेंडा एक ही है. सोच और समझ भी बहुत कुछ एक जैसा ही है. जमीनी मुद्दे पर संघर्ष भी कई बार मिल कर करते हैं. लेकिन, चुनाव के वक्त वाम एकता बिखर जाती है. यहीं कारण है कि संयुक्त बिहार में कभी झारखंड वाले इलाकों को राजनीतिक दिशा देने वाले वामदल आज संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. बमुश्किल एक-दो लोगों को विधानसभा तक पहुंचा पा रहे हैं.

नेताओं संग छूटती जा रही है जमीन :

एके राय एक समय कोयलांचल के बड़े नेता थे. उनके बाद वामदल वहां भी कमजोर होने लगे. कभी संताल परगना में वामदल नेता विश्वेश्वर खां बड़े नेता थे. जब तक जिंदा रहे वह विधायक रहे. उनके निधन के बाद नाला से वामदल के दूसरे नये नेता सदन तक नहीं पहुंच पाये. यही स्थिति रामगढ़ की भी रही. रामगढ़ से शब्बीर अहमद कुरैशी उर्फ भेड़ा सिंह विधायक थे.

उनके निधन के बाद हुए उप चुनाव में यहां की सीट भाजपा जीत गयी थी. इसके बाद यहां दुबारा वामदल नहीं जीत पाया. अब तक वहां फिर जमीन तलाश रही है. संयुक्त बिहार के समय से केवल बगोदर ही एक ऐसी सीट है, जहां वामदल आज भी मजबूती से खड़ा है.

भाकपा-माले नेता महेंद्र सिंह की हत्या के बाद उनके पुत्र विनोद सिंह जीत रहे हैं. केवल एक बार उनकी सीट से भाजपा जीती है. वहीं राजधनवार से एक बार ही राजकुमार यादव ने माले का प्रतिनिधित्व किया. मासस के अरुप चटर्जी भी अपनी सीट पर स्थायित्व नहीं बना पा रहे हैं.

हजारीबाग सीट से जीतते थे भुवनेश्वर मेहता :

भाकपा नेता भुवनेश्वर मेहता हजारीबाग संसदीय सीट से जीतते रहे हैं. उन्होंने 1991 और 2004 में हजारीबाग संसदीय सीट का नेतृत्व किया. पिछले तीन चुनाव से हजारीबाग सीट भी वामदलों से दूर हैं. वैसे तीनों वाम दलों के वरीय नेताओं का कहना है कि हमारा उद्देश्य चुनाव जीतना नहीं है. हम जन मुद्दों को लेकर संघर्ष करते हैं.

क्षेत्रीय दल छीन रहे हैं मुद्दे :

वामदलों की जनाधार पर क्षेत्रीय दलों ने कब्जा जमाना शुरू कर दिया है. वामदलों के मुद्दे भी अब क्षेत्रीय दल लेने लगे हैं. सामाजिक न्याय, प्राकृतिक संसाधनों का वितरण, महंगाई, भ्रष्टाचार या गरीबी, दलित राजनीति जैसे एजेंडे को हथिया लिया है. इसके अलावा सांप्रदायिकता और धर्म-जाति के नाम पर वोटरों का ध्रुवीकरण वामपंथ के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो रहा है.

वामदलों की यूनियन में हैं दूसरे दलों के विधायक

वामदलों से संबद्ध कई यूनियन झारखंड में कोयला क्षेत्र में सक्रिय हैं. कोयला उद्योग में इनका दबदबा है. भाकपा से संबद्ध ट्रेड यूनियन एटक है. एटक से संबंद्ध ट्रेड यूनियन यूसीडब्ल्यू के सदस्य ढुलू महतो भाजपा के विधायक हैं. एटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद सह विधायक रमेंद्र कुमार हैं. इसी यूनियन ने झामुमो विधायक सीता सोरेन को भी अपना सदस्य बनाया है. जबकि भाजपा और झामुमो से संबद्ध अपना ट्रेड यूनियन भी चल रहा है.