मध्य भारत में टाइगर रिज़र्व और अभयारण्य, अब माओवादियों के सुरक्षित ठिकाने बनते जा रहे हैं. जंगल के एक इलाक़े से जुड़े हुए दूसरे इलाक़ों में आने-जाने के लिए माओवादी पहले भी टाइगर रिज़र्व और अभयारण्यों का इस्तेमाल करते रहे हैं लेकिन अब वो इन जंगलों में अपने संगठन का विस्तार कर रहे हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मध्यप्रदेश की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले को भी माओवाद प्रभावित ज़िलों में शामिल कर लिया है. केंद्र सरकार की सिक्योरिटी रिलेटेड एक्सपेंडिचर यानी सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में मुंगेली ज़िला पहली बार शामिल किया गया है.
इसके अलावा गृह मंत्रालय ने छह राज्यों के जिन आठ ज़िलों को ‘डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कंसर्न’ के रूप में वर्गीकृत किया है, उनमें भी मुंगेली ज़िले को शामिल किया गया है.
माना जा रहा है कि ज़िले के अचानकमार टाइगर रिज़र्व में माओवादी गतिविधियों के कारण यह फ़ैसला लिया गया है.
बिलासपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक रतन लाल डांगी ने बीबीसी से कहा, “अचानकमार से लगे हुए सीमावर्ती इलाक़े में माओवादियों की सक्रियता की ख़बरें आती रहती हैं. अचानकमार के इलाक़े में हथियारबंद माओवादियों का कोई समूह घूम रहा हो, ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है लेकिन कई बार माओवादी बिना हथियार के भी अपना मूवमेंट जारी रखते हैं, ऐसे में अचानकमार में उनकी उपस्थिति नहीं है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता.”
केंद्र सरकार की माओवाद प्रभावित इलाक़ों की इस विशेष सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में छत्तीसगढ़ के 28 में से 14 ज़िले शामिल रहे हैं. गृह मंत्रालय ने बालोद ज़िले का नाम माओवाद प्रभावित ज़िलों की सूची से हटा दिया है लेकिन इसकी जगह मुंगेली ज़िले को शामिल किए जाने के कारण, माओवाद प्रभावित ज़िलों की संख्या अब भी 14 बनी हुई है.
मुंगेली के अलावा बस्तर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोंडागांव, कांकेर, सुकमा, बीजापुर, राजनांदगांव, कबीरधाम, धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद और बलरामपुर माओवाद प्रभावित ज़िलों की सूची में बने हुए हैं.
एमएमसी ज़ोन
अविभाजित मध्य प्रदेश के दौर में भाकपा माले पीपुल्स वार से जुड़े माओवादियों के दंडकारण्य ज़ोन में पाँच डिविज़न थे. इन पाँचों डिविज़न- उत्तर बस्तर, दक्षिण बस्तर, माड़, गढ़चिरौली और बालाघाट-भंडारा का अपने-अपने इलाक़ों में ख़ासा प्रभाव था. इन इलाक़ों में संदिग्ध माओवादी सरकार के लिए बड़ी चुनौती बने हुए थे.
इसी दौरान 15 दिसंबर 1999 को मध्यप्रदेश के परिवहन मंत्री लिखीराम कांवरे की संदिग्ध माओवादियों ने उनके गृह ज़िले बालाघाट में हत्या कर दी थी. लिखीराम कांवरे की हत्या ने इस इलाक़े में सुरक्षाबलों के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की थी.
यही कारण है कि माओवादियों के ख़िलाफ़ एक बड़ा अभियान इस इलाक़े में चलाया गया और कुछ सालों में उसका असर भी नज़र आने लगा. माओवादी इस इलाक़े में कमज़ोर पड़ते चले गये लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि माओवादियों की सारी गतिविधियां ठप हो गईं.
माओवादी ‘एक क़दम आगे और दो क़दम पीछे’ की गुरिल्ला युद्ध की अपनी रणनीति पर काम करते रहे.
इसके लगभग साल भर बाद छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना और माओवादियों ने बस्तर के कई इलाक़ों को ‘लिबरेटेड’ ज़ोन घोषित कर के अपना आधार मज़बूत करना शुरु किया.
माओवादियों की गतिविधियां बस्तर के अलावा उससे लगे हुए राजनांदगांव, गोंदिया, गढ़चिरौली, बिलासपुर, डिंडौरी, बालाघाट, मंडला की पूरी पट्टी में जारी रही. लेकिन छत्तीसगढ़ के अलावा दूसरे इलाक़ों के अधिकांश हिस्से मूल रुप से आश्रय स्थल ही बने रहे.
छत्तीसगढ़ में पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी का दावा है कि राज्य में जब माओवादियों पर दबाव बढ़ा तो उन्होंने अपने लिए दूसरे इलाक़े तलाशने शुरु किए और 2016 में माओवादियों ने एमएमसी ज़ोन यानी महाराष्ट्र-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ज़ोन बनाया.
इस ज़ोन में मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट में फैले कान्हा नेशनल पार्क और कबीरधाम के भोरमदेव अभयारण्य के इलाक़े को मिला कर केबी डिविज़न बनाया गया.
इसी तरह महाराष्ट्र के गोंदिया, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव और मध्यप्रदेश के बालाघाट इलाक़े को जीआरबी डिविज़न में शामिल किया गया.
पिछले सप्ताह माओवादियों की केंद्रीय कमेटी ने एक बयान में दावा किया कि पिछले साल भर में देश भर में माओवादी संगठन के 160 लोग मारे गये हैं. मृतकों में आठ माओवादियों की एमएमसी ज़ोन से जुड़े हुए थे.
जंगल में माओवादी पट्टी
एमएमसी ज़ोन के गठन के बाद से, पिछले कुछ सालों में बस्तर के घने जंगलों से होते हुए कान्हा टाइगर रिज़र्व तक जंगल की एक पूरी पट्टी में माओवादियों की सक्रियता की ख़बरें समय-समय पर सामने आती रही हैं.
छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले का अचानकमार टाइगर रिज़र्व, राज्य के भोरमदेव से गलियारे की तरह कान्हा टाइगर रिज़र्व तक जुड़ा हुआ है. इस पूरे इलाक़े में पिछले कई सालों से माओवादियों की आवाजाही बनी हुई है.
मंडला-बालाघाट का कान्हा टाइगर रिज़र्व, उमरिया ज़िले का बांधवगढ़ नेशनल पार्क, सीधी ज़िले का संजय टाइगर रिज़र्व, छत्तीसगढ़ के कोरिया ज़िले का गुरु घासीदास नेशनल पार्क एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.
दूसरी ओर कान्हा टाइगर रिज़र्व का गलियारा पेंच टाइगर रिज़र्व से होते हुए सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व और मेलघाट टाइगर रिज़र्व तक जुड़ा हुआ है. महाराष्ट्र के दूसरे अभयारण्य और टाइगर रिज़र्व से जुड़े हुए हैं.
मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र संचालक सुनील कुमार सिंह का कहना है कि बालाघाट का इलाक़ा पिछले 30 सालों से माओवाद प्रभावित बना हुआ है लेकिन पिछले दो-तीन सालों से कान्हा में भी संदिग्ध माओवादियों की आवाजाही देखी गई है.
सुनील कुमार सिंह कहते हैं, “माओवादियों को अभी स्थानीय सहयोग नहीं है, इसलिए उनकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं है. वे अभी स्थापित की प्रक्रिया में हैं. लेकिन भविष्य की बात कह पाना मुश्किल है.
माओवादियों का भय
हालांकि, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के एक अन्य अधिकारी ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर स्वीकार किया कि हथियारबंद माओवादियों की उपस्थिति के कारण शाम पाँच बजते तक अधिकांश बड़े अधिकारी पार्क के इलाक़े से बाहर निकल जाते हैं. इसी तरह अति विशिष्ट लोगों के आसपास के रिज़ॉर्ट और होटलों में रात में रुकने को लेकर भी अतिरिक्त सतर्कता बरती जाती है.
दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुंगेली ज़िले के अचानकमार टाइगर रिज़र्व में कुछ दिनों पहले ही नियुक्त किए गये क्षेत्र संचालक एस जगदीशन का कहना है कि शासन ने माओवादी गतिविधियों को लेकर जो सूचना दी होगी, उसी आधार पर मुंगेली ज़िले को सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में शामिल किया गया होगा.
एस जगदीशन ने बीबीसी से कहा, “माओवादियों की वजह से कोई प्रभाव है या नहीं, अभी यह कह पाना संभव नहीं है क्योंकि मुझे अभी ऐसा कोई असर नज़र नहीं आया है. ना ही ऐसा कोई घटनाक्रम मेरे सामने आया है जिससे ये अनुमान लगता हो कि आगे कोई असर दिखेगा.”
रायपुर में पुलिस के एक शीर्ष अधिकारी अचानकमार और कान्हा के इलाक़े में माओवादी गतिविधियों को बहुत ही गंभीरता से लेने के पक्ष में हैं.
उन्होंने कहा, “यह सबको पता था कि माओवादी इन इलाक़ों में पिछले कई सालों से सक्रिय हैं लेकिन कभी इसे स्वीकार नहीं किया गया. जब स्वीकार ही नहीं किया गया तो समाधान की दिशा में कोशिश नहीं की गई. अब जबकि सरकार इसे स्वीकार रही है तो इस पर जल्दी क़ाबू पाना ज़रुरी है.”
सुरक्षा संबंधी व्यय योजना में शामिल ज़िले
आंध्र प्रदेशके पूर्वी गोदावरी, श्रीकाकुलम, विशाखापत्तनम, विजयनगरम और पश्चिम गोदावरी.
बिहारके औरंगाबाद, बांका, गया, जमुई, कैमूर, लखीसराय, मुंगेर, नवादा, रोहतास और पश्चिम चंपारण.
छत्तीसगढ़के बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, गरियाबंद, कांकेर, कोंडागांव, महासमुंद, नारायणपुर, राजनांदगांव, सुकमा, कबीरधाम और मुंगेली.
झारखंडके बोकारो, चतरा, धनबाद, दुमका, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, हजारीबाग, खूंटी, लातेहार, लोहरदगा, पलामू, रांची, सरायकेला-खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम.
केरलके मलप्पुरम, पलक्कड़ और वायनाड.
मध्य प्रदेशके बालाघाट, मंडला और डिंडोरी.
महाराष्ट्रके गढ़चिरौली और गोंदिया जिले.
पश्चिम बंगालका झारग्राम.
ओडिशाके बरगढ़, बोलांगीर, कालाहांडी, कंधमाल, कोरापुट, मलकानगिरी, नबरंगपुर, नुआपाड़ा, रायगढ़ा और सुंदरगढ़.
तेलंगानाके आदिलाबाद, भद्राद्री-कोठागुडेम, जयशंकर-भूपालपल्ली, कोमाराम-भीम, मंचेरियल और मुलुगु.
स्रोतः गृह मंत्रालय