छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के पुरोधा और लोक संगीत के भीष्म कहे जाने वाले संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत वयोवृद्ध संगीतकार खुमान साव का आज सुबह निधन हो गया। उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे छत्तीसगढ़ी कला जगत में शोक का माहौल है।
बीती देर रात कुछ कलाकारों ने उनकी गंभीर अस्वस्थता की सूचना सोशल मीडिया में पोस्ट की थी, लेकिन इधर तड़के सुबह छत्तीसगढ़ी फिल्मों के सुप्रसिद्ध डायरेक्टर मनोज वर्मा तथा अभिनेता और गायक सुनील तिवारी ने लगभग 6 बजे सोशल मीडिया में उनके निधन की पुष्टि कर दी है। इस सूचना के अनुसार, श्री साव का अंतिम संस्कार उनके गृहग्राम ठेकुआ राजनांदगांव में होगा।
इस सूचना के फैलते ही पूरी फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ मंच से जुड़े हर विधा के कलाकारों के बीच शोक का माहौल है। आज सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार होना है, जिसमें राजधानी रायपुर समेत कई जिलों के कलाकार और कलाप्रेमी शामिल होंगे और उनके परिजनों के साथ दुख की इस घड़ी में खड़ा होंगे।
छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के बेजोड़ शिल्पी थे खुमान साव
छत्तीसगढ़ की समृद्धशाली लोक सांस्कृतिक परंपरा में रचे बसे गीतों और विलुप्त होती लोक धुनों को परिमार्जित कर तथा आधुनिक कवियों की छत्तीसगढ़ी रचनाओं को स्वरबद्ध कर उसे लोकप्रियता की दृष्टि से फिल्मी गीतों के समकक्ष खड़ा देने वाले संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित स्वनाम धन्य लोक संगीतकार खुमान लाल साव सही अर्थों में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक दूत थे, जिन्होंने अपनी विलक्षण संगीत साधना और पांच हजार मंचीय प्रस्तुतियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ महतारी का यश चहुंओर फैलाया है।
लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत एवं सुगम संगीत के साधक श्री साव का जन्म 5 सिंतबर 1929 को डोंगरगांव के समीप खुर्सीटिकुल नामक गांव में एक संपन्न मालगुजार परिवार में हुआ। बचपन से संगीत के प्रति रूचि रखने वाले श्री साव ने योग्य गुरूओं के संरक्षण में संगीत की बारीकियों को समझा।
14 वर्ष की कच्ची उम्र में उन्होंने नाचा के युग पुरूष मंदराजी दाऊ की रवेली नाचा पार्टी में शामिल होकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। विभिन्न नाचा पार्टियों में अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए श्री साव ने बाद में राजनांदगांव में आर्केस्ट्रा की शुरूआत की। खुमान एंड पार्टी, सरस्वती संगीत समिति, शारदा संगीत समिति और सरस संगीत समिति का संचालन करते हुए उन्होंने अंत में राज भारती संगीत समिति तक का सफर तय किया, लेकिन आर्केस्ट्रा पार्टियों में फिल्मी गीत संगीत के अनुशरण से वे कतई संतुष्ट नहीं थे। उनके भीतर का संगीतकार उन्हें बार बार मौलिक संगीत रचना के लिए प्रेरित कर रहा था।
सन 1970 में उनकी मुलाकात लोक कला मर्मज्ञ बघेरा निवासी दाऊ रामचंद देखमुख से हुई जो छत्तीसगढ़ की प्रथम लोक सांस्कृतिक संस्था ‘चंदैनी गोंदा’ के निर्माण की योजना बनाकर योग्य कलाकारों की तलाश में घूम रहे थे। उन्हें एक ऐसे संगीत निर्देशक की तलाश थी, जो छत्तीसगढ़ी आंचलिक गीतों में नया प्राण फूंक सके। श्री साव स्वयं अपनी मौलिक संगीत रचना की प्रस्तुति के लिए बेचैन थे। श्री देशमुख के आग्रह को स्वीकार कर श्री साव ‘चंदैनी गोंदा’ में संगीत निर्देशक के रूप में शामिल हुए।
संगीतकार श्री साव और गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया ने दिन-रात मेहनत कर ‘चंदैनी गोंदा’ के रूप में श्री देशमुख के सपने को साकार किया। 7 नवंबर 1970 से दुर्ग जिले के बघेरा से जारी ‘चंदैनी गोंदा’ की अविराम यात्रा चार दशक बाद भी जारी रहा और श्री साव आज भी ‘चंदैनी गोंदा’ रूपी रथ के सारथी बने हुए थे।
‘चंदैनी गोंदा’ के उद्भव के पूर्व छत्तीसगढ़ी लोकगीतों का पारंपारिक स्वरूप ज्यों का त्यों गांवों, खेतों, खलिहानों में उत्सव के राग रंगों और नाचा गम्मत की टोलियों तक ही सीमित था। ‘चंदैनी गोंदा’ के माध्यम से श्री साव ने यत्र तत्र बिखरे हुए बहुप्रचलित पारंपारिक लोक गीतों कर्मा, ददरिया, नचौरी, सुआ, गौरा, विवाह गीत, बसदेवा गीत, सोहर, भोजली, पंथी तथा देवी जसगीतों को उनकी मौलिकता बरकरार रखते हुए परिष्कृत और परिमार्जित कर अपने कर्णप्रिय संगीत के द्वारा लोकप्रिय बना दिया।
छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोक गीतों के अलावा श्री साव ने छत्तीसगढ़ के स्वनाम धन्य कवियों द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’, स्व. प्यारे लाल गुप्त, स्व. हरि ठाकुर, स्व. हेमनाथ यदु, पं. रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मण मस्तुरिया, पवन दीवान एवं मुकुंद कौशल के गीतों को संगीतबद्ध कर उसे जन जन का कंठहार बना दिया।
तोर धरती-तोर माटी रे भैय्या, मोर संग चलव रे, धरती मैय्या जय होवय तोर, काबर तैं मारे नैना बान, मन डोले रे माघ फगुनुवा, मोर खेती खार रूनझुन, धनी बिना जग लागे सुन्ना, मंगनी मा मांगे मया नई मिलै, मोर गंवई गंगा ए, बखरी के तुमा नार बरोबर, पता दे जा रहे गाड़ी वाला जैसे विविध भाव-भरे गीतों की संगीत सर्जना कर श्री साव ने इन गीतों को अमर कर दिया।
श्री साव के संगीतबद्ध इन गीतों को जहां लोगों ने आकाशवाणी रायपुर के सुर सिंगार कार्यक्रम में सुना। वहीं ‘चंदैनी गोंदा’ की मंचीय प्रस्तुति के माध्यम से अब तक लाखों श्रोताओं ने इन गीतों के भावों को पूरी तरह महसूस किया है। ‘चंदैनी गोंदा’ की प्रस्तुति के दौरान लोग श्री साव की अद्भुत सर्जना जन्य माधुर्य की अनुगूंज से सराबोर हो उठते थे। हजारों का जनसैलाब ‘चंदैनी गोंदा’ की विहंगम प्रस्तुति को देखने उमड़ पड़ता था। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक गीतों को परिष्कृत, परिमार्जित और कर्णप्रिय संगीत देकर फिल्मी गीतों के समानांतर लाकर खड़ा किया।
श्री साव का मन कभी कभी आज के बदले परिवेश में गीतों के स्तर, द्विअर्थी भावों और संगीत की मूलभूत लोक संरचना में आई विकृतियों से आहत हो जाता था। वे चाहते थे कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति की धरोहर सुरक्षित और संरक्षित रहे। 87 वर्ष की उम्र के बावजूद श्री साव की लगन, समर्पण, आत्मनिष्ठा और छत्तीसगढ़ की माटी के प्रति मोह का वही स्वरूप ‘चंदैनी गोंदा’ मंच पर देखने को मिलता था। 87 वर्ष की आयु में भी पूरी रात ‘चंदैनी गोंदा’ के मंच पर हारमोनियम की रीड पर ऊंगलियां चलाते श्री साव को देखना अद्भुत अनुभव रहा।
धुन के पक्के श्री साव में गजब की सांगठनिक क्षमता थी। ‘चंदैनी गोंदा’ की साढ़े चार दशकों की यात्रा के दौरान अनेक कलाकार ‘चंदैनी गोंदा’ से जुड़े और श्री साव के कुशल निर्देशन में अपनी प्रतिभा को तराशा। बाद में कई कलाकारों ने धीरे धीरे अपना अगल आशियाना भी बना लिया, लेकिन श्री साव कभी भी विचलित नहीं हुए। नैसर्गिक कलाकारों को तलाश कर उन्हें तराशना, मंच, नाम, दाम और सम्मान देना तथा उनके सुख-दुख में सहभागी बनना श्री साव की खास विशेषता रही।
अत्यंत स्वाभिमानी श्री साव ने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। अनुशासन के प्रबल पक्षधर श्री साव जुबान से कड़े जरूर थे, लेकिन उनका हृदय बच्चों की तरह कोमल था। उनकी डांट में भी हमेशा एक अभिभावक की समझाईश होती थी।
‘न यश की लिप्सा और न सम्मान की आकांक्षा’ रखने वाले श्री साव अपने धुन के पक्के थे। युवावस्था के दौरान खेतों में काम करती हुई एक ग्राम्य बाला के मुंह से एक फिल्मी गीत सुनकर उनका मन वितृष्णा से भर उठा था। माटी का आत्म गौरव जागा, उसी दिन से उन्होंने अपने आप को छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के लिए समर्पित कर दिया था। हारमोनियम की रीड पर चली उनकी ऊंगलियों ने अनेक कालजयी संगीत की रचना की। उनके सुर ताल, लय और धुन को सुनकर समूचा छत्तीसगढ़ अचंभित रहा।
श्री साव को 4 अक्टूबर 2016 को छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के क्षेत्र में अप्रतिम योगदान के लिए प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार-2015 से सम्मानित किया गया था। तात्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य एवं गरिमामय समारोह में उन्हें सम्मानित किया था। सम्मान समारोह के दूसरे दिन श्री साव ने मेघदूत थियेटर नई दिल्ली में अपनी 31 सदस्यीय टीम के साथ मात्र 55 मिनट की प्रस्तुति में छत्तीसगढ़ी पारंपरिक लोकगीत, नृत्य एवं कर्णप्रिय संगीत की सरिता बहाकर राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के बौद्धिक वर्ग को न केवल छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की लोकप्रियता से परिचित कराया था, अपितु प्रभावी प्रस्तुति की धाक भी जमाई थी।
बहरहाल अपने समय की किवदंती बन चुके श्री साव छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के जिंदा इतिहास थे। उनके द्वारा संगीतबद्ध लोक गीत चिरस्थायी हैं और रहेंगे। उनकी संगीत साधना से अमर कालजयी गीत रचनाएं छत्तीसगढ़ की धरोहर हैं। उनकी अनवरत संगीत साधना को छत्तीसगढ़ कभी नहीं भूल पाएगा।