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राज्य निर्माण को सार्थक बनाता ढाई दशक का विकास,बनाने से लेकर संवारने तक “विष्णु” की भूमिका अहम

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देश का 26 वाँ राज्य छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रहा है। प्रसन्नता और संतोष के साथ आज के छ्त्तीसगढ़ को निहारने वाले वे लोग अधिक होंगे जिन्होंने अपने जीवन में चार से अधिक बसंत देखे होंगे। उस पीढ़ी के लिए इस छत्तीसगढ़ का विकास गर्व का एहसास कराने वाला है। स्थापना दिवस के इस पड़ाव पर हम सभी को अतीत में अवश्य झाँकना चाहिए जिससे आज की पीढ़ी भी जान और मान सके कि इतिहास के अंधेर और अंधकार को पीछे छोड़ आज हमारा छत्तीसगढ़ देश में कैसे प्रकाश स्तंभ की तरह खड़ा है। आज छत्तीसगढ़ की विकास दर 6.9 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत के करीब है। प्रतिव्यक्ति आय एक लाख 47 हजार रूपए है जो वर्तमान मध्यप्रदेश से अधिक है। प्रतिव्यक्ति बिजली की खपत राष्ट्रीय औसत 1327 यूनिट से कहीं अधिक 2211 यूनिट है। ये कुछ उदाहरण हैं जो विकास के आधारभूत मानकों में प्रदेश की स्थिति को दर्शाते हैं।
राज्य ने बीते ढाई दशकों में हर क्षेत्र में प्रगति की है और विकास के सभी आयामों में सफलता पाई है, पर इस सफलता को भी सापेक्षता के साथ देखे जाने की आवश्यकता है । किस पड़ाव से आज हम किस मुकाम पर पहुँचे हैं यह बहुत मायने रखता है। सिर्फ ढाई दशक पहले मध्यप्रदेश के इस एक तिहाई हिस्से छत्तीसगढ़ को मूलभूत सुविधाओं और महत्वपूर्ण विकास योजनाओं के लिए ताकते ही रहना पड़ता था। अधोसंरचना का विकास हो या शासकीय योजनाओं का लाभ भोपाल से निकलकर भोपालपट्टनम पहुँचना बड़ा ही कठिन था। यह भौतिक दूरी से ज्यादा इस क्षेत्र के प्रति उपेक्षा का नजरिया था जो किसी भी विकास कार्य को हमसे दूर रखता था।
बिजली आपूर्ति का मामला हो या सड़कों का विस्तार , चिकित्सा हो या शिक्षा सभी मूलभूत मामलों में यह मध्यप्रदेश के अन्य विकसित क्षेत्रों से कही पीछे धकेला गया था। मध्यप्रदेश के दौर में 28 केन्द्रीय कम्पनियों तथा 40 प्रशिक्षण संस्थाओं में से सिर्फ एक-एक छत्तीसगढ़ में स्थापित था यानि 68 में से सिर्फ दो संस्थान छ्त्तीसगढ़ के हिस्से था। ऐसे ही बजट आवंटन से लेकर व्यय के मामलों में छत्तीसगढ़ को दोयम व्यवहार का सामना करना पड़ता था। मध्यप्रदेश के राजस्व में कुल 68 प्रतिशत हिस्सा जिस छत्तीसगढ़ से मिलता था वहाँ सिर्फ 12 प्रतिशत खर्च किया जाता था।
राज्य पुनर्गठन आयोग 1953 में जब गठित हुआ तब भी बड़ी मजबूती से पृथक छत्तीसगढ़ की मांग की गई थी। छत्तीसगढ़ महासभा, भातृसंघ, संघर्ष मोर्चा, छत्तीसगढ़ पार्टी, गोंडवाना पार्टी विकास मंच, छ्त्तीसगढ़ फौज, छत्तीसगढ़ मंच जैसे राजनीतिक तथा गैरराजनीतिक संगठनों ने समय – समय पर अहिंसक आंदोलनों के माध्यम से पृथक राज्य की मांग के लिए संघर्ष जारी रखा।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने छत्तीसगढ़ समेत दो अन्य राज्यों के गठन का बड़ा निर्णय लिया । वर्ष 2000 में पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में जब इन तीन राज्यों के गठन को लेकर विधेयक प्रस्तुत किया तो सबसे अधिक आमसहमति छत्तीसगढ़ राज्य के गठन को लेकर थी। छत्तीसगढ़ का भूभाग 44 वर्षों तक मध्यप्रदेश का हिस्सा रहा वहीं एक नवंबर 1956 के पहले मध्यभारत और बरार प्रांत में शामिल था।
छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की दशकों की मांग, जब विधेयक बनकर आया तो संसद में चंद घंटों की चर्चा में लगभग निर्विरोध पारित भी हो गया। यह छत्तीसगढ़ को राज्य की मान्यता देने में एक आमसहमति को दर्शाता है। राज्य गठन के लिए विविधवत शुरूआत 18 मार्च 1994 में हुई जब भाजपा विधायक गोपाल परमार के अशासकीय प्रस्ताव को मध्यप्रदेश विधानसभा द्वारा सर्वानुमति से पारित किया गया। केन्द्र की तत्कालीन सरकार ने इसे महत्व नहीं दिया। बाद में अटल जी ने अपनी पार्टी के घोषणापत्र में किए गए वादे अनुसार सबसे पहले 1998 में कैबिनेट से पास कर अपनी दृणता को प्रदर्शित किया, पर सरकार गिर जाने के कारण प्रस्ताव पारित हो न सका। पुनर्निर्वाचित होने पर प्रस्ताव फिर लाया गया ।
31 जुलाई 2000 को मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया। 02 अगस्त को लोकसभा में विधेयक पर कुल सवा तीन घंटे की चर्चा में विधेयक बिना किसी संशोधन के पारित किया गया। 15 सदस्यों ने चर्चा में हिस्सा लिया और राष्ट्रीय जनता दल, सीपीआई(एम) तथा समाजवादी पार्टी को छोड़ भाजपा, कांग्रेस, बसपा समेत सभी दलों ने राज्य गठन का समर्थन किया। दूसरी तरफ 9 अगस्त को राज्यसभा में लगभग चार घंटे चली चर्चा में 23 सदस्यों ने भाग लिया। 25 अगस्त को राष्ट्रपति डॉ के आर नारायणन ने इस विधेयक पर हस्ताक्षर कर अधिनियमित किया।
खास बात यह रही कि जिस दिन कृषि प्रधान राज्य के गठन का प्रस्ताव लोकसभा ने पारित किया वो हरेली अमावस्या का दिन था। यह छत्तीसगढ़ की कृषि परंपरा में विशेष उत्सव का दिन होता है। दूसरी ओर राज्यसभा ने वनवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ के गठन संबंधी प्रस्ताव को विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर 9 अगस्त को पारित किया। यह एक बड़ा सुखद संयोग है कि जिस वनवासी बहुलता वाले राज्य का गठन 24 वर्ष पूर्व किया गया था उस छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय वनवासी समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं और एक विलक्ष्ण संयोग यह भी कि जिस लोकसभा में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के गठन का प्रस्ताव पारित हुआ तब विष्णुदेव साय उसके सदस्य के रूप में शामिल थे।
राज्य गठन के बाद गठित सरकारों ने लोकभावना के अनुकूल तेजी से विकास पर बल दिया और स्थिर सरकारों के गठन ने विकास के पहिये को तेजी से दौड़ाया है। सुशासन की राह पर चल रही सरकारों ने विभिन्न प्रतिकूलताओं के बीच प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से भरे राज्य को तेजी से आगे बढ़ाया है जिसके परिणामस्वरूप बीते ढाई दशकों में राज्य ने विकास के स्थापित प्रतिमानों को छुआ है। जीवन स्तर में बहुत बेहतरी आई है। बहुत कुछ किया जा चुका है पर अभी बहुत से काम बाकी हैं। इसलिए स्थापना के रजत वर्ष में राज्य निर्माता अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक पंक्ति हमें प्रेरित करेंगी कि “जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें “।